योगेश्वर श्री कृष्ण

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योगेश्वर श्री कृष्ण

जन्माष्टमी पर यदि श्री कृष्ण के कोई रूप का चिंतन करना है तो में योगेश्वर स्वरूप का चिंतन करूंगा |

कृष्ण जन्म, संसार के लिए तप की उच्चतम अवस्था का प्रसाद स्वरूप तेज था |

यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत् ⁠।
भौमस्य ब्रह्मणो गुप्त्यै दीप्तमग्निमिवारणिः ⁠।⁠।⁠

जैसे अरणि प्रज्वलित अग्निको प्रकट करती है, उसी प्रकार देवकीदेवीने इस भूतलपर रहनेवाले ब्राह्मणों, वेदों और यज्ञोंकी रक्षाके लिये उन भगवान्‌को वसुदेवजीके तेजसे प्रकट किया था ⁠।⁠।

– भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण स्तुति से

श्रीमद भगवद गीता और अन्य महाभारत संकलित गीता में उनके योगी बुद्धि का अनुभव होता ही है परंतु उनके तप का विवरण अर्जुनाभिगमनपर्व में अर्जुन और द्रौपदी द्वारा की गई स्तुति से मिलता है !

दश वर्षसहस्राणि यत्रसायंगृहो मुनिः ⁠।
व्यचरस्त्वं पुरा कृष्ण पर्वते गन्धमादने ⁠।⁠।⁠ ११ ⁠।⁠।

अर्जुन बोले—श्रीकृष्ण! पूर्वकालमें गन्धमादन पर्वतपर आपने यत्रसायंगृह मुनिके रूपमें दस हजार वर्षोंतक विचरण किया है; अर्थात् नारायण ऋषिके रूपमें निवास किया है ⁠।⁠।⁠ ११ ⁠।⁠।

दश वर्षसहस्राणि दश वर्षशतानि च ⁠।
पुष्करेष्ववसः कृष्ण त्वमपो भक्षयन् पुरा ⁠।⁠।⁠ १२ ⁠।⁠।

सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण! पूर्वकालमें कभी इस धराधाममें अवतीर्ण हो आपने ग्यारह हजार वर्षों-तक केवल जल पीकर रहते हुए पुष्करतीर्थमें निवास किया है ⁠।⁠।⁠ १२ ⁠।⁠।

ऊर्ध्वबाहुर्विशालायां बदर्यां मधुसूदन ⁠।
अतिष्ठ एकपादेन वायुभक्षः शतं समाः ⁠।⁠।⁠ १३ ⁠।⁠।

मधुसूदन! आप विशालापुरीके बदरिकाश्रममें दोनों भुजाएँ ऊपर उठाये केवल वायुका आहार करते हुए सौ वर्षोंतक एक पैरसे खड़े रहे हैं ⁠।⁠।⁠ १३ ⁠।⁠।

अवकृष्टोत्तरासङ्गः कृशो धमनिसंततः ⁠।
आसीः कृष्ण सरस्वत्यां सत्रे द्वादशवार्षिके ⁠।⁠।⁠ १४ ⁠।⁠।

कृष्ण! आप सरस्वती नदीके तटपर उत्तरीय वस्त्रतकका त्याग करके द्वादशवार्षिक यज्ञ करते समयतक शरीरसे अत्यन्त दुर्बल हो गये थे। आपके सारे शरीरमें फैली हुई नस-नाड़ियाँ स्पष्ट दिखायी देती थीं ⁠।⁠।⁠ १४ ⁠।⁠।

प्रभासमप्यथासाद्य तीर्थं पुण्यजनोचितम् ⁠।
तथा कृष्ण महातेजा दिव्यं वर्षसहस्रकम् ⁠।⁠।⁠ १५ ⁠।⁠।
अतिष्ठस्त्वमथैकेन पादेन नियमस्थितः ⁠।
लोकप्रवृत्तिहेतुस्त्वमिति व्यासो ममाब्रवीत् ⁠।⁠।⁠ १६ ⁠।⁠।

गोविन्द! आप पुण्यात्मा पुरुषोंके निवासयोग्य प्रभासतीर्थमें जाकर लोगोंको तपमें प्रवृत्त करनेके लिये शौच-संतोषादि नियमोंमें स्थित हो महातेजस्वी स्वरूपसे एक सहस्र दिव्य वर्षोंतक एक ही पैरसे खड़े रहे। ये सब बातें मुझसे श्रीव्यासजीने बतायी हैं ⁠।⁠।⁠ १५-१६ ⁠।⁠।

क्षेत्रज्ञः सर्वभूतानामादिरन्तश्च केशव ⁠।
निधानं तपसां कृष्ण यज्ञस्त्वं च सनातनः ⁠।⁠।⁠ १७ ⁠।⁠।

केशव! आप क्षेत्रज्ञ (सबके आत्मा), सम्पूर्ण भूतोंके आदि और अन्त, तपस्याके अधिष्ठान, यज्ञ और सनातन पुरुष हैं ⁠।⁠।⁠ १७ ⁠।⁠।

श्री कृष्ण कृपा से, उनके जीवन तप की प्रेरणा से, हम सब योग साधना से मनुष्य जन्म सार्थक करने के प्रयत्न करते रहें !

जन्माष्टमी की अनंत शुभकामनाए

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