YogaSutra : Sadhana Pada : Sutra 10

Marut

Dharma

ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः।।2.10।।

।।2.10।। ते पञ्च क्लेशा दग्धबीजकल्पा योगिनश्चरिताधिकारे चेतसि प्रलीने सह तेनैवास्तं गच्छन्ति। स्थितानां तु बीजभावोपगतानाम्

(क्रिया योग से) सूक्ष्म बना देने के बाद , (ध्यान से) वे (क्लेश) अपने कारण में लीन कर देने चाहियें!

प्रसव = उत्पन्न होना, आविर्भाव
प्रतिप्रसव = कारण में लय होना, तिरोहित होना

चित्त का अव्यक्त में लय होना, प्रति प्रसव है।

क्रियायोग (तप,स्वाध्याय,ईश्वर प्रणिधान) से क्लेशों का तनूकरण करना था | उनका हल्का बनाना था | उनके स्थूल स्वरूप (प्रकटीकरण) को नष्ट कर सूक्ष्म स्वरूप में लाना था | जैसे आगे बात की , क्लेशों का सूक्ष्म स्वरूप में रहने पर, जब भी अनुकूल परिस्थिति निर्माण होने पर , उनका स्थूल स्वरूप पुनः सामने आने लगता है | जन्म समय पर सभी क्लेश सूक्ष्म स्वरूप में होते है परंतु जैसे जैसे संसार के विविध आयाम के संपर्क में आते है, क्लेश स्थूल होते जाते है | एक ही उपाय है – क्लेश बीजों का सर्वनाश!
सूक्ष्म स्वरूपी क्लेश का नाश करने की प्रक्रिया है प्रतिप्रसव | प्रसव अर्थात जन्म | प्रतिप्रसव अर्थात अपने मूल में लय हो जाना | क्लेश का मूल चित्त है | चित्त का मूल अव्यक्त परमात्मा है | असंप्रज्ञात समाधि ध्यान से चित्त अव्यक्त में लीन होता है | यही प्रक्रिया चित्त आधीन क्लेशों के लिए प्रतिप्रसव है |
जैसे स्थूल पानी को उबाल का सूक्ष्म बनाया जाता है और धीरे धीरे ऊर्ध्व गति से जल वायु में और वायु आकाश में लीन होता है , वैसे क्रिया योग से क्लेशों को सूक्ष्म बनाकर, ध्यान रूपी प्रतिप्रसव प्रक्रिया से उनको अपने मूल में विलीन करना चाहिए |

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