किनसे अन्न ग्रहण करें या न करें?

Marut

Dharma, Food Science, FoodRespect

प्राथमिक शिक्षण और अभिभावकता के संदर्भ जब हम यह कहते है की अन्न तो माता या मातृत्व पूर्ण व्यक्ति ही पकाये तो यह बात लोगों को हठाग्रह लगता है।

वास्तव में, अन्न प्राण का वाहक है प्राण विचारों का!

साक्षात श्री कृष्ण ने दुर्योधन के अन्न का अस्वीकार कर अन्न व्यवहार की पवित्रता के बात रखी है । हम महाभारत पढ़ते नहीं तो धर्म के ऐसे सूक्ष्म तत्त्व समझ नहीं आएंगे ।

जब दुर्योधन ने धर्म का आश्रय ले कर श्री कृष्ण को आमंत्रित किया तब श्री कृष्ण उत्तर देते है :

सम्प्रीतिभोज्यान्यन्नानि आपद्भोज्यानि वा पुनः ⁠।

न च सम्प्रीयसे राजन् न चैवापद्‌गता वयम् ⁠।⁠।⁠ २५ ⁠।⁠।

‘किसीके घरका अन्न या तो प्रेमके कारण भोजन किया जाता है या आपत्तिमें पड़नेपर। नरेश्वर! प्रेम तो तुम नहीं रखते और किसी आपत्तिमें हम नहीं पड़े हैं ⁠।⁠।⁠ २५ ⁠।⁠।

द्विषदन्नं न भोक्तव्यं द्विषन्तं नैव भोजयेत् ⁠।

पाण्डवान् द्विषसे राजन् मम प्राणा हि पाण्डवाः ⁠।⁠।⁠

‘जो द्वेष रखता हो, उसका अन्न नहीं खाना चाहिये। द्वेष रखनेवालेको खिलाना भी नहीं चाहिये। राजन्! तुम पाण्डवोंसे द्वेष रखते हो और पाण्डव मेरे प्राण हैं।

सर्वमेतन्न भोक्तव्यमन्नं दुष्टाभिसंहितम् ⁠।

क्षत्तुरेकस्य भोक्तव्यमिति मे धीयते मतिः ⁠।⁠।⁠ ३२ ⁠।⁠।

‘तुम्हारा यह सारा अन्न दुर्भावनासे दूषित है। अतः मेरे भोजन करनेयोग्य नहीं है। मेरे लिये तो यहाँ केवल विदुरका ही अन्न खानेयोग्य है। यह मेरी निश्चित धारणा है’ ⁠।⁠।⁠ ३२ ⁠।⁠।

इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि भगवद्यानपर्वणि श्रीकृष्णदुर्योधनसंवादे एकनवतितमोऽध्यायः ⁠।⁠।⁠ ९१ ⁠।⁠।

***

सोचो, यदि हम स्वास्थ्य स्थिरता इच्छुक, काम वश (जिह्वा लंपट – स्वाद रागी) या आलस के कारण(अपना और परिवार का अन्न बनाने का श्रम न करना पड़े) restaurant का अन्न ग्रहण करना चाहिए?

Leave a Comment

The Prachodayat.in covers various topics, including politics, entertainment, sports, and business.

Have a question?

Contact us