Test of Perfecting Asana

Marut

Dharma

पिछले दिनों, यहाँ लिखा था –
“हम कसरत के रूप में अगणित आसन किया करते है पर सिद्ध क्या हुआ?
मात्र पद्मासन भी सिद्ध हो जाए..तो भी जीवन सार्थक हो गया समझो !”
तो प्रश्न है की आसन सिद्धि अर्थात क्या?
उत्तर के लिए जाते है पतंजलि योग सूत्र के साधन पाद में ..
स्थिरसुखमासनम्।।2.46।।
जो शारीरिक स्थिति स्थायी और सुखी है वह आसन है |
शारीरिक स्थिति है |
स्थायी स्थिति है |
सुखद है |
आस्यते अनेन इति करणे ल्यूट् -> आसनम् -> बैठने के प्रकार -> स्थिर और सुखद बैठने के प्रकार !
भाष्यकारों ने ऋषियों और मुनियों द्वारा अनुभूत बैठने की विविध शैलियों को आसन रूप में गिनाए है – तद्यथा पद्मासनं वीरासनं भद्रासनं स्वस्तिकं दण्डासनं सोपाश्रयं पर्यङ्कं क्रौञ्चनिषदनं हस्तिनिषदनमुष्ट्रनिषदनं समसंस्थानं स्थिरसुखं यथासुखं चेत्येवमादीनि।
योग का एक अंग अर्थात आसन अर्थात स्थिर और सुखद स्थिति में बैठने के प्रकार !
सभी बैठने की स्थितियों में , अर्थात आसनों में, पद्मासन और सिद्धासन को सबसे अधिक महत्व दिया गया है | (संदर्भ गोरक्ष संहिता)
‘‘आसनेभ्य: समस्तेभ्यो द्वयमेव प्रशस्यते ।
एकं सिद्धासनं प्रोक्तं द्वितीयं कमलासनम्’’ ॥
आगे देखते है
प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्।।2.47।।
शारीरिक व्यापार के अभाव में आसन सिद्ध हो सकता है | या फिर शेषनाग में समापन्न चित्त आसन सिद्ध कर सकता है | मेरी समझ से , देहाभिमान का नाश होने पर और अनंत का चिंतन करने पर आसन सिद्ध हो सकता है |
आसन सिद्ध होने का प्रमाण क्या?
ततो द्वंद्वानभिघातः।।2.48।।
तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः।।2.49।।
।।2.48।। शीतोष्णादिभिर्द्वंद्वैरासनजयान्नाभिभूयते।
।।2.49।। सत्यासने बाह्यस्य वायोराचमनं श्वासः कौष्ठ्यस्य वायोर्निःसारणं प्रश्वासः तयोर्गतिविच्छेद उभयाभावः प्राणायामः।
आसन सिद्ध होने पर साधक द्वंद्व से अभिभूत नहीं होता ! आसन सिद्धि होने पर ही श्वास-प्रश्वास की गति पर नियंत्रण कर सकते है |
इति आसन सिद्धि प्रक्ररणं | अस्तु 🙏

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