Role of community in education

Marut

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शुभ प्रभात

(मूल लेख 10 वर्ष पुराना है, हिन्दी अनुवाद नवीन है)

कुछ जागरूक अभिभावक से हो रहे संवाद के कुछ अंश | विषय था – इस अराजक वातावरण में बच्चों की अभिभावकता (पेरन्टींग) कैसे करनी?। हमारे आस-पास के वातावरण के विषाक्त प्रभाव (जो की मन और शरीर को न मात्र दूषित कर रहा है , उसको शनै शनै नष्ट भी कर रहा है!) को कैसे दूर किया जाए या संतुलित किया जाए।

एक बात समझ लो –

हम सब और कुछ नहीं बल्कि जैविक और मानसिक आग के रूप हैं, मूल तत्व के अग्नि के ही रूप। हम यहां प्रकाश फैलाने के लिए हैं। दूसरों की सहायता करना। एक दूसरे को प्रेरणा देने और प्रेरित होना है !

तेल के दीये के नीचे हमेशा अँधेरा रहता है। यह प्रकाश फैला सकता है लेकिन उसकी परिधि में किसी न किसी रूप में अंधेरा है।

फिर मेरी परिधि के अँधेरे को कौन संभालेगा? (मैं निःस्वार्थ भाव से दूसरों की देखभाल अपने सामाजिक कर्तव्य के रूप में करता हूं, मेरे परिवार की देखभाल कौन करेगा? मेरे बच्चे?)

उत्तर सरल है |

सहृदयी का संघ हो ! दीपक कभी भी व्यक्तिगत रूप से नहीं जलाया जाता है। एक साथ दीपक जलाए जाते हैं। दीपावली ! मैं तुम्हारा ख्याल रखता हूं, तुम मेरा ख्याल रखना। मैं तुम्हारे बच्चों का पालन-पोषण करता हूं, तुम मेरे बच्चों के आदर्श बनो !

एक निश्चित उम्र के बाद, जब बच्चे यौवन तक पहुंच रहे होते हैं, तो वे रोल मॉडल की तलाश करते हैं। माता-पिता के रूप में, यह हमारा कर्तव्य है कि हम खुद को रोल मॉडल (समुदाय के भीतर एक निकटतम दीपक) से जोड़ दें जो अंधेरे (बच्चे की अज्ञानता) को दूर कर सके। आपका सबसे अच्छा दोस्त, आपका भाई, आपकी बहन। अगर बच्चे को सही उम्र में दीया मिल जाए तो रिलैक्स हो जाएं। समाज के जहरीले प्रभाव का नहीं होगा असर !

संग और सत्संग (अच्छे परिवारों और दोस्तों की कंपनी) बाल विकास का महत्वपूर्ण पहलू है।

सनातन धर्म जानते हो ? तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान का अनुष्ठान कर रहे हो ? आप भी दीपक हो , आसपास से चन्द्रगुप्त पहचानिए और अपना आचार्य धर्म निभाए !

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