वृक्ष पूजा प्राण दान है। आप श्रद्धा से जिसे समर्पित होते हो, उसके साथ अपने प्राण का आदान प्रदान करते हो। कभी हम दानी होते है तो कभी भिक्षुक।
*संस्कृति संवर्धन के लिए आवश्यक – कन्या (प्राण सर्वस्व) दान से पोषित विवाहित जीवन में समर्पण गुण*
समर्पण से पुष्ट प्राण -> पुष्ट प्राण से प्रफुल्लित सात्विक मन -> सात्विक मन से धर्म कर्तव्य कर्म -> कर्तव्य कर्मों से सार्थक लग्न जीवन
विवाह, कन्या (प्राण) दान है।
आध्यात्मिक प्रगति हेतु जैसे प्रकृति, पितृ, देवो, ऋषि और ईश्वर के प्रति समर्पण भाव हो वैसे ही विवाहित जीवन में, कर्तव्य कर्मों को सार्थक करने हेतु, एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण होना आवश्यक है।
एक दुसरे के प्रति पूर्ण समर्पण के अभाव से ही, लग्न जीवन में, प्राण का आदान प्रदान नहीं होता और विवाहित जीवन में पति पत्नी में से एक के या दोनों के निर्बल प्राण से विक्षिप्त मन से हुए राजसिक और तामसिक कर्मो के कारण, घर – संसार तितर बितर हो कर बिखर जाता है।
आजकल समर्पण का संस्कार न मातापिता से मिलता है, न परिवार से और शिक्षण तो स्वच्छंद ही बनाता है।
यदि आप अभिभावक हो तो गुण विकास पर अचूक ध्यान देना चाहिए।