पिछली बार हमने देखा के क्लेश-पंचक में अविद्या मूल में है | अविद्या रूपी मूल पर विविध प्रक्रिया होने से अन्य क्लेश उत्पन्न होते है | अन्य क्लेश कभी शुद्ध रूप से नहीं होते | उनके असंख्य स्वरूप उत्पन्न होते है |
बुद्धि को ही आत्मा समझने से अस्मिता रूपी क्लेश उत्पन्न होता है | दृष्टा और दृश्य की भिन्नता का विवेक होने पर यह क्लेश नष्ट होता है | ज्ञातृत्व और ज्ञेयत्व का भेद होना चाहिए! दृक शक्ति और दर्शन शक्ति का भेद!
सुख का अनुभव होने पर उसकी पुनः चाहना, लोभ, लोलुपता राग है |
दुःख होने पर उसके साधन\निमित्त पदार्थ\व्यक्ति\परिस्थिति के प्रति होने वाली मानसिक हिंसा, क्रोध, मरने की इच्छा द्वेष है !
अभिनिवेश – मृत्यु के त्रास के पूर्वजन्म के अनुभव से मरने का जो डर उत्पन्न होता है उसे अभिनिवेश क्लेश कहते है | यह क्लेश वर्तमान में कोई प्रत्यक्ष, अनुमान या आगम प्रमाण आधीन नहीं है बल्कि पूर्वजन्म के संस्कार से है |
इन क्लेशों के उद्भव पर मनन कर उनके उद्भव की परिस्थिति निर्माण होने वाली हो तब जागरूक रहकर परिस्थिति का नाश करना चाहिए |
जागरूकता के उपाय तो आगे के सूत्रों में बात दिया है | क्रिया योग – तप , स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान