शिक्षण कार्य में सक्रिय जन को तैतरिय उपनिषद का अभ्यास अचूक करना चाहिए। इस उपनिषद के शिक्षा वल्ली के ९ वे अनुवाक में गृहस्थ के आचार का सुंदर निरूपण किया है ।
गृहस्थ ही अन्य सभी वर्णाश्रम व्यवस्था का आधार है । गृहस्थ निर्माण शिक्षण व्यवस्था का व्यवहारिक लक्ष्य होना चाहिए।
गृहस्थ जीवन वेद आधारित हो।
वेद को जीवन में स्थिर करने के प्रमुख दो माध्यम है।
- स्वाध्याय – स्व का अध्ययन , शस्त्रों का श्रवण \ मनन \ चिंतन से अभ्यास
- प्रवचन – प्रवचन का अर्थ प्रवचन सुनना नहीं है । श्रवण तो स्वाध्याय अंतर्गत या गया। यहाँ स्वाध्याय से आत्मसात किए शास्त्रीय सिद्धांतों को जन जन समक्ष ले जाने की बात है। इसलिए सहहृदयी लोगों का संग हो और उनके समक्ष आपकी शास्त्रीय समज नियमित रुप से अभिव्यक्त हो यह प्रवचन है।
स्वाध्याय और प्रवचन से बुद्धि में दो बात को दृढ़ करनी है ।
- ऋत – शास्त्र के विचारों से निर्मित, mental models जिनका उपयोग व्यवहार हेतु कर सकते है
- सत्य – शास्त्र आधारित लोक व्यवहार , जीवंत कर्म, लोक परंपरा
ऋत और सत्य से मन, बुद्धि, इंद्रियों, प्राण को तैयार करना है.. कैसे?
- तप – शरीर, मानसिक, वाचिक तप (संदर्भ श्रीमद भगवद गीता)
- दम – इंद्रिय निग्रह
- शम – मन निग्रह
मन, बुद्धि, इंद्रियों, प्राण से ही मानुष व्यवहार हो। मानुष व्यवहार से मुख्य तीन कार्य गृहस्थ को करने है
- अग्निहोत्र – पंचमहाभूत संतुलन
- अतिथि सेवा (ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम सेवा)
- प्रजा उत्पत्ति (ब्रह्मचर्य आश्रम सेवा)
Refernece
ऋतं च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । सत्यं च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । तपश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । दमश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । शमश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । अग्नयश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । अग्निहोत्रं च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । अतिथयश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । मानुषं च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । प्रजा च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । प्रजनश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । प्रजातिश्च स्वाध्यायप्रव॑चने॒ च । सत्यमिति सत्यवचा॑ राथी॒ तरः । तप इति तपोनित्यः पौ॑रुशि॒ष्टिः । स्वाध्यायप्रवचने एवेति नाको॑ मौद्ग॒ल्यः । तद्धि तप॑स्तद्धि॒ तपः ॥ १॥ इति नवमोऽनुवाकः ॥
तैत्तिरीयोपनिषत् – 9 अनुवाक