जितना माहिती का प्रपात बढ़ता रहेगा, उतना ही भारतीय योग शास्त्र का महत्व भी। अन्य कोई मार्ग है ही नहीं!
मस्तिष्क में Dopamine प्रसारण अनेक रूप से होता है!वह तब ही लाभदायी है जब तक साथ में ज्ञानतंतुओ की निष्क्रियता भी है। योगनिद्रा!
योग, भांग हो या psychedelics या इंद्रिय भोग, सब में, अपेक्षा अतुल्य आनंद की ही होती है। चेतना की सजागता से यह अतुल्य आनंद की अनुभूति है। योग से अन्य सभी साधनों से प्राप्त यह सजागता क्षणिक और जीवन प्राण क्षीण करने वाली होती है।
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः ।
अर्थ – भोगों को हमने नहीं भोगा, बल्कि भोगों ने ही हमें ही भोग लिया ।
अतुल्य आनंद क चाह में भोग मार्ग से चले तो स्वयं का नाश ही है।
हम जैसे सामान्य लोगों के लिए, यम, नियम से प्रारंभ कर, समाधि तक, योग मार्ग ही सरल और सहज है।