अत्रिवत्,कण्ववत्,जमदग्निवत् क्रिमयो हन्मि । – अथर्व वेद
आयुर्वेद की भाषा में , सूर्य, चंद्र, अनिल (वायु) से ही स्वास्थ्य या आयु टिकती है।
मेरे अभ्यास अनुसार, अत्रि, कण्व, जमदग्नि ऋषि प्राण है और अत्रि चंद्र के पिता है। पिता अर्थात जो अस्तित्व प्रदान करे और अस्तित्व टिकाए रखे । चंद्र का तेज अत्रि प्राण से है। अत्रि प्राण सूर्य की रश्मि का अवरोधक (रोकने वाला तत्त्व) है।
कण्व, जमदग्नि पर भी विस्तार कर सकते है।
पर यहाँ, आयुर्वेद के सिद्धांत को समझने हेतु अत्रि प्राण की समझ पर्याप्त है।
पिंड रूपी सृष्टि जगत। माता पिता के रंगसूत्र २% है बाकी ९८% तो है जन्म जन्मों का भार! सोम अनिल सूर्य के संयोग से हो रहे है पिंड रूपी ब्रह्मांड के जन्म। सोचो..कैसे निर्धारित होती है सोम अनिल सूर्य गति? कर्म कर्म कर्म
I have my own (own because I have not found it explicitly mentioned anywhere in Ayurveda reading so far) theory about manifestation of Microbes in body as well as in the universe and it is about movements of Prana and their interaction with other aspects like Surya and Soma. (सूर्य – अनिल – सोम axis) . My understanding is based on Ayurveda. सूर्य – अनिल – सोम axis takes care of everything but my focus is to understand manifestation of microbes.
मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार (शास्त्र प्रमाण नहीं है, शास्त्र चिंतन का निचोड़ है , में मिथ्या भी हो सकता हूँ) , हमारा अस्तित्व सूर्य, अनिल और सोम आधारित है | इनमें अनिल का कार्य सूर्य और सोम रूपी शक्ति तो क्रियान्वित रखना है ! दक्षिणायन काल में , सोम उपासना अंतर्गत ही पितर उपासना आती है ! शरीर गत पित्त (सूर्य) भी इसी समय प्रकोपित होता है, सोम ही करता है उसका शमन ! पहले पितर उपासना , बाद में सोम उपासना !
जैसी शरीर में सूर्य और चंद्र नाड़ी है वैसे ही ब्रह्मांड में सूर्य और चंद्र मार्ग है | पितर सोम \ चंद्र मार्ग से संबंधित है |
उत्तरायण में सूर्य साधना
दक्षिणायन में सोम साधना
सूर्य नाड़ी = sympathetic nervous system
चंद्र नाड़ी = parasympathetic nervous system