नवरात्र में साधना कैसे करें?

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*“नवरात्र में साधना कैसे करें?”*

वैसे तो शास्त्र आधारित मार्ग पर शनै शनै चलना चाहिए। किन्तु शनै शनै में पूरा जीवन निकल सकता है तो साधन पद्धति सीखने के साथ साथ क्या करें ?

उपवास कीजिए ।

उपवास अर्थात ?

– 9 दिन के लिए एक निश्चित आहार-विहार निर्धारित कीजिए और उस पर, मानसिक तनाव के बिना डटे रहिए। उदाहरण के रूप में – मात्र एक टंक का भोजन लेना , अन्य समय दूध या फल। 9 दिन स्वयंपाकी (अपना भोजन स्वयं बनाना) रहना आदि

– ब्रह्ममुहूर्त में उठकर माँ के नामजप में न्यूनतम 30 मिनिट का समय दो । चंडीपाठ लक्ष्य हो सकता है किन्तु प्रक्रिया का ज्ञान न हो तो श्री ललितासहस्रनामस्तोत्रम् का पारायण कर प्रारंभ कर सकते है । (Shri Lalita Sahasranama Stotram, consists of 1000 names of Devi Shri Lalithamba and is present in the Brahmanda Purana. These names were told by God Hayagriva to Sage Agastya. Daily Parayana of Shri Lalita Sahasranama is a ritual followed in many families across generations. If not daily, atleast weekly parayana on a specific day of week is known to be a highly beneficial activity for individuals and family as a whole. You can learn chanting here: Enroll to this course https://www.sanskritfromhome.org/course-details/LearntoChant-Shri-Lalita-Sahasranama-Stotram-29213)

– शक्ति साधना हेतु विविध प्रक्रिया दिनचर्या का भाग बना सकते है ।

कुछ लोग शरीर साधना में प्रवृत्त हो सकते है (हेमंत के आगमन का स्वीकार करते, 9 दिन धीरे धीरे अपनी शारीरिक व्यायाम शक्ति बढ़ा सकते है।

कुछ लोग ज्ञान साधना में प्रवृत्त हो सकते है – उदाहरण के रूप में – 9 दिन 9 उपनिषदों का अध्ययन – प्रत्येक दिन गीता के 2 अध्याय का अध्ययन – 9 दिन संस्कृत संभाषण के वर्ग का पुनरावर्तन आदि ।

कुछ लोग मानसिक शक्ति की साधना में लग सकते है – उदाहरण : मौन व्रत । ध्यान इत्यादि ।

कुछ लोग प्राण साधना में प्रवृत्त हो सकते है – योग आसन में अपनी स्थिरता का मापदंड बढ़ाना , प्राणायाम में कुम्भक की अवधि बढ़ाना इत्यादि ।

इहलोक (शरीर \ मन \ बुद्धि के) व्रत और साधना के साथ साथ , परलोक की सेवा भी करनी है । पितृ साधना के बाद आप अग्नि पूजा \ होम इत्यादि के माध्यम से परलोक शुद्धि में भी क्रियान्वित रह सकते हो।

में आप सब के जैसा भटका हुआ हिन्दू ही हूँ । जो भी ऊपर लिखा है वह स्वानुभाव है। वर्षा ऋतु के अंत पर (और वसंत के अंत पर भी!) आसुरी वृत्तियाँ अपनी चरम सीमा पर होती है | नवरात्र साधना अनिवार्य व्यक्तिगत एवं सामाजिक कर्म है ! यह कर्म के बहुजन के जीवन से लोप होने से ही प्रति वर्ष आसूरिक वृतियाँ और उनसे पोषित राक्षस वृत्ति का बल बढ़ता जाता है! पिंड में भी और समष्टि में भी | समष्टि गत असुरों से प्राकृतिक आपदा और पिंड गत असुरों से शरीरी \ मानसिक आधी\व्याधि और अन्य जनों के लिए उपाधि रूपी ताप बढ़ता जाता है ! उपचार सरल है – यथा शक्ति सनातन धर्म व्यवस्था प्रणीत साधना काल में साधना रत बने रहें !

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