जगन्ति यस्यां सविकासमासत ।
– शिशुपालवध १.२३
पुरुष & प्रकृति in their interplay, have infinite aspects. And each aspect has its day, its turn and its good time and its night, its dormant time.
Infinite aspects have infinite time and infinite space to manifest in.
कर्मकांड शब्द सुनते है पढे-लिखे भारतीयों को सांप सूंघ जाता है और उनके अंदर का सेक्युलर कलेवर जाग जाता है | ऐसा होता है शिक्षण का प्रभाव !
वास्तवमें, पुरुष – प्रकृति की निरंतर चलती क्रीडा के कहीं आयाम है और हम भी इनका भाग होने से , इनके प्रभाव से अछूते नहीं रह सकते है | यहीं आयामों को विनियमित करना ही कर्मकांड का प्राथमिक हेतु है | विनियमित किए बिना, साधना न होगी | साधना न होने पर मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य पूर्ण नहीं होता !
अन्योन्याभिभवाश्रयजननमिथुनवृत्तयश्च गुणा: ॥
-सांख्य कारिका
Moods and functions of the mind and corresponding modes of matter depend upon eachother, cannot exist without each other, are inseparably bound up with each other, stimulate and give rise to each other and yet they struggle against each other.
This infinite aspects can be regulated for the स्वधर्म | That is what we call कर्मकाण्ड |
Unless you regulate infinite aspects of Guna of mind and matter, there is no way to progress on the path of self-realization.