बच्चा सो नहीं रहा? डरा दो!
बच्चा भोजन नहीं कर रहा? धमकी दो!
बच्चा कुचेष्टा कर रहा है? मारो!
इस रूप की अभिभावकता ही भविष्य के विकारी समाज को जन्म देती है।
एक सामान्य बात जो मैंने देखी वह यह है कि कई माता-पिता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए (बच्चे को सुलाना या बच्चे को खाना खिलाना आदि) डर फैलाने में लगे रहते हैं।
यह बेहद असंवेदनशील प्रथा है।
चरक संहिता (आयुर्वेदिक प्राधिकारी ग्रंथ) के अनुसार
“न ह्यस्य वस्त्रासनं साधु तस्मात्तस्मिन रुदत्यभुञ्जने वाऽन्यत्र विधेयतमगच्छति राक्षसपिशाचपूतनाद्यानां नामन्याह्वयता कुमारस्य वस्त्रसनार्थं नामग्रां न कार्यं स्यात् |” [1]
“कभी भी डर फैलाने में शामिल न हों। अगर बच्चा खाना नहीं खाता, रोता है और शरारतें करता है तो भी डर पैदा न करें। उन्हें डराने के लिए कभी भी भूत, राक्षस, पिशाच, पूतना आदि काल्पनिक पात्रों का प्रयोग न करें। उन्हें भूत, राक्षस, पिशाच, पूतना जैसी छाया मत दिखाओ”
आजकल तो रोते हुए बच्चों को कार्टून दिया जाता है जोकि एक रूप में भूत, राक्षस, पिशाच, पूतना जैसी विकृति प्रतिकृतियाँ ही है! आप डरा नहीं रहे हो पर यदि कार्टून के हवाले करते हो तो भी बालक के मानसिक विकास हेतु हानिकारक है!
यह अभ्यास अवचेतन रूप से उनकी जन्मजात निडरता को खत्म कर देता है और वयस्क जीवन में हल्के से लेकर गंभीर मानसिक समस्याओं को जन्म देगा। टालना। यह माता-पिता होने की चुनौती है। बच्चे को समझाने के लिए रचनात्मक तरीके सीखें न कि शॉर्टकट यानी डर पैदा करना या धमकी देना। इस तरह की परवरिश आपको अंत में नुकसान की ओर ले जाएगी। अपना ध्यान रखना।