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यदि आप ब्रह्मचर्य आश्रम में हो तो चातुर्मास आप के लिए नया अभ्यास प्रारंभ करने का उत्तम समय है ।
श्रावणी पूर्णिमा के दिन (12 Aug 2022) – शास्त्र अध्ययन प्रारंभ हेतु आंतरिक काल चक्र को पुनः एक बार जीर्णोद्धार कर पुनःस्थापन करना है!
तब तक अपना तपोबल बढ़ाना है । देवशयन एकादशी से प्रभु भक्ति में लीन हो कर, गुरु पूर्णिमा पर गुरु आशीर्वाद से अपने अभ्यास की पूर्व तैयारी में लग जाना चाहिए।
यदि देवश्याना एकादशी से तप का (उपकर्म का) प्रारंभ किया हो तो श्रावण-भाद्रपद यह समय आने तक आंतरिक शुद्धि के अच्छी प्रगति हुई होगी | शास्त्र अभ्यास की योग्यता पर शरीर, मन और बुद्धि लाने का अब तक का समय था | इससे आगे, उपकर्म कर शास्त्र अभ्यास करना है , पौष मास के रोहिणी नक्षत्र तक , उत्सर्जन कर्म करने तक | उत्सर्जन कर्म से उपकर्म तक (पौष से देवश्याना एकादशी) लौकिक कार्य करने है |
विज्ञान की दृष्टि से, देवश्याना एकादशी से श्रावणी पूर्णिमा अर्थात लगभग १ मास का समय | It is enough time to form a habit again from past 6-8 months laukika work routine.
आयुर्वेद के हिसाब से रस से लेकर मज्जा तक प्रत्येक धातु पाँच दिन-रात और डेढ़ घड़ी (३६ मिनिट) तक अपनी अवस्था में रहती है । तदनन्तर वीर्य बनता है अर्थात् ३० दिन-रात और ९ घड़ी (पौने चार घण्टे) में रस से वीर्य की उत्पत्ति होती है । यह सिद्धांत भी यहाँ लगता है – देवश्याना एकादशी से श्रावणी पूर्णिमा तक के तप से शरीर शुद्धि होने पर ही शास्त्र अभ्यास।
ग्रीष्म के कारण आई शुक्र क्षीणता से ओजस क्षीणता होगी| ओजस क्षीणता से तेज क्षीण रहेगा | तेज क्षीण स्थिति में प्रज्ञा कैसे खिलेगी? प्रज्ञा न खिलने पर शास्त्र श्रवण का प्रभाव नहीं होगा |
वास्तव में प्रत्येक वर्ष के उपकर्म से अध्ययन शील ब्रह्मचारी का तेज और प्रज्ञा बढ़ाना चाहिए| इसीलिए गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजा पश्चात वर्षा ऋतु मध्ये वार्षिक परीक्षा भी होती थी | जिसके परिणाम से आगे के तप का प्रकार और अभ्यास का निर्णय होता था |