Desi Cow – Motherly solution for Bharat’s critical food problem

Marut

Cow, Food, Gau

Desi Cow Img src: http://goo.gl/m50J2g
Desi Cow
Img src: http://goo.gl/m50J2g
Indian Cows (http://www.fao.org/docrep/V0600T/v0600T00.jpg)
Indian Cows
(http://www.fao.org/docrep/V0600T/v0600T00.jpg)

स्व आ दमे सुदुधा यस्य धेनुः स्वधां पीपाय सुभ्व‌न्नमत्ति |

सो अपां नपादूर्जय‌न्नप्स्व 1न्तर्वसुदेयाय विधते वि भाति ||

ऋग्वेद 2|35|7||

 

शब्दार्थ –

 

यस्य…………………..जिसके

स्वे…………………….अपने

आ……………………..ही

दमे…………………….घर में

सुदुधा………………….उत्तम दुध देने वाली, आसानी से दोही जाने वाली

धेनुः……………………दुधारु गौ है वह

स्वधाम्………………..अपनी शक्ति को

पीपाय………………….बढ़ाता है और

सुभु…………………….उत्तम रीति से सिद्ध होने वाले

अन्नम्…………………अन्न को

अत्ति…………………….खाता है |

सः……………………..वह

अपाम् + नपात्………….जीवनी शक्ति को पतित न होने देने वाला

अप्सु +अन्तः, अपां + नपात्…जलों के भीतर रहने वाली बिजली के समान

उर्जयऩ्………………..बल सम्पन्न होता हुआ

वसुदेयाय………………धन देने योग्य

विधते…………………मेधावी के लिए

विभाति………………..विशेषतः चमकता है |

व्याख्या –

वेद की उपदेश करने की शैली निराली है | वेद कहीं आदेश करता है, कहीं निषेध करता है, कहीं प्रार्थना द्वारा कर्त्तव्याकर्त्तव्य का बोध कराता है, कहीं वास्तविक स्थिति आगे रख कर समझाता है |

इस मन्त्र में जो बात कही है, वह पहले भी ठीक थी, आज भी सत्य है और कल को भी यथार्थ होगी |वेद के उपदेश सामयिक नहीं, वरन् सदातन = सदा रहने वाले, त्रिकालाबाधित हैं | अथर्ववेद 5|28|3 में कहा है –

 

त्रयः पोषास्त्रिवृति श्रयन्तामनक्तु पूषा पयसा घृतेन |

अन्नस्य भूमा पुरुषस्य भूमा भूमा पशूनां त इह श्रयन्ताम ||

इस त्रिगुणात्मक जगत् में तीन पुष्टियाँ बनी र‌र्हें – (1) अन्न की बहुतायत (2) पुरुषों की बहुलता तथा (3) पशुओं की बहुतायत | ये इस संसार में बनी रहें, पशुपति दूध-घी से भरपूर रहें | दूध-घी कहाँ से आये ? पशुओं से | पशुओं मे‍ गौ का घी-दूध सबकी अपेक्षा उत्कृष्ट माना गया है | अतएव वेद में गौ की महिमा बहुत है | यथा – गावो भगो गाव इन्द्रो मे | (अथर्ववेद 4|21|5) = गौएँ ही भाग्य और गौएँ ही मेरा ऐश्वर्य हैं |

 

यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम|

भद्रं ग्रृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ||

अथर्ववेद 4|21|6

गोएँ दुबले को भी मोटा कर देती हैं और शोभाहीन को भी सुन्दर बना देती हैं | मधुर बोली वाली गौएँ घर को कल्याणमय बना देती हैं | सभाओं में गौओं की बहुत कीर्ति कही जाती है |

 

गौओं को पालने की रीति का भी थोड़ा संकेत है –

प्रजावती सूयवसे रुशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः |

अथर्ववेद 4|21|7

सन्तान सहित गौएँ उत्तम चारे के कारण पुष्ट हों, उत्तम जलपान के स्थान में शुद्ध जल का पान करें |

आज गोभक्त आर्य इस उपदेश को भूल सा गया है | अब न अच्छा चारा देते हैं और न गौओं को शुद्ध जल पिलाने की व्यवस्था की जाती है | यह तभी हो सकता है जब स्व आ दमे सुदुधा यस्य धेनुः – अपने घर में ही उत्तम दूध देने वाली गौ हो |

वेद के कथनानुसार जिसके दूध के पीने से दुर्बल भी हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं और श्रीहीन सुश्रीक = सुन्दर शोभामान् हो जाते हैं, उससे पूरा लाभ उठाने के लिए उसे घर में पालना अच्छा होता है | इसका दूध पीने से गोपति जल में विद्युत् के समान चमकता है ||

 

– स्वामी वेदानन्द तीर्थ सरस्वती

I feel little ashamed for our ignorance, when we Indians call ‘Jersey’ ,breed of wild European animal Aurochs as ‘गाय’, worship it and drink her milk as if we are drinking गाय दूध. And more dangerous ignorance is to be ashamed when we don’t know that Aurochs breed’s(As if Jersey) milk has CASOMORPHINE, whose accumulation in body leads to a peptide poisoning. This is particularly often reported in patients with ADHD, autism and schizophrenia.

Why Food chain correction is most critical problem?

Apart from external environmental factors affecting mind space, it is our polluted food and water sources, that play major role in weakening our psyche and slip ourselves in the mode societal corruption.

When people talk about neurological disorders, they consider only those disorders which exhibit visible symptoms (Autism, Phobias etc). For me, lack of integrity or moral perversion is also a neurological disorder, albeit silent one. It is getting diagnosed, only during harvesting time of past deeds of individual. And in most cases, it is never diagnosed during life time.

Corruption in society is resultant of polluted food origins. While working on correcting political system, it is equally important to see that majority of us, get nutritional food, both physical and mental.

Mental food by disinfecting Education system, physical food by disinfecting agriculture.

If you think you are sane citizen, contribute, in your capacity possible, for politics, education and agriculture.

With corrupted and weak psyche and body of majority in us, it is difficult to penetrate sane reformative ideas in our minds.

You go and explain, ideal democracy but if the other person is devoid of pure food and water, it is difficult for him being receptive and understand sane ideas necessary to change the Nation’s destiny from current shoddy state. Even if he/she understands, he/she won’t do much in action due to weak body and mind. For survival, compromises happen and saga of personal involvement in corruption continues.

Food -> Education -> Political awareness -> Critical Mass for change -> Revolution

Any upheaval, out of reaction, would remain temporary since roots are corrupt and in hibernation. With favorable environment to flourish, weakness will sprout again and reforms will topple again towards nadir.

If roots are replaces by food and education, it is difficult for any external force to break strong National fabric.

Political awareness minus Food and Education -> Revolution minus prolonged stability.

Strive for prolonged happiness.

 

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