#prachodayatspark #prachodayathealth
श्रीहरिके योगनिद्रामें प्रवृत्त हो जानेपर मनुष्य चार मास अर्थात् कार्तिककी पूर्णिमातक भूमिपर शयन करे।
ऐसा क्यूँ?
वर्षा ऋतु वात दोष के प्रकोप की ऋतु है। ग्रीष्म ऋतु में संचित वात दोष वर्षा ऋतु में प्रकुपित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वात व्याधियाँ इस ऋतु में तेजी से मनुष्य शरीर को घेरती है। ग्रीष्म ऋतु में जठराग्नि दुर्बल हो जाती है। जबकि वर्षा ऋतु में वात दोष के कुपित होने के कारण पाचन तंत्र और अधिक दुर्बल हो जाता है।
वायु प्रकोप से क्या होता है?
अंगों में रूखापन और जकड़न
सुई के चुभने जैसा दर्द
हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन
हड्डियों का खिसकना और टूटना
अंगों में कमजोरी महसूस होना एवं अंगों में कंपकपी
अंगों का ठंडा और सुन्न होना
कब्ज़
नाख़ून, दांतों और त्वचा का फीका पड़ना
मुंह का स्वाद कडवा होना
मानसिक असंतुलन, अवसाद आदि मानसिक विकार
जमीन पर सोने से, पृथ्वी तत्व के संपर्क से वात कुछ अंश से संतुलित कर सकते है।
Sleeping on the floor is to back what barefoot walk is to feet. During Chaturmas, it is specially prescribed to sleep on the floor.
Hard mattress is also considered as prescription for back-pain[1]
Largely anecdotal evidence has been collected by “old timers” for over 50 years from non-Western societies that low back pain and joint stiffness is markedly reduced by adopting natural sleeping and resting postures.[2]
“Adult sleepers in traditional societies recline on skins, mats, wooden platforms, the ground, or just about anything except a thick, springy mattress. Pillows or head supports are rare, and people doze in whatever they happen to be wearing. Virtually no one, including children, keeps a regular bedtime. Individuals tend to slip in and out of slumber several times during the night. In these unplugged worlds, darkness greatly limits activity and determines the time allotted to sleep. Folks there frequently complain of getting too much sleep, not too little.” (3)
[1] https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/14630439/
[2] https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC1119282/
[3] https://www.thefreelibrary.com/Slumber%27s+Unexplored+Landscape.-a056458799