दिन के अंत पर रात्रि है । वर्ष के अंत पर चातुर्मास है । दो ही ऐसे समय है जब इंद्रियों के अधिष्ठान(brain) अत्यंत प्रवृत्तिशील होते है । इस अधिष्ठान की प्रवृत्ति पर मन\बुद्धि\स्मृति\अहंकार का स्वास्थ्य निर्भर करता है । 24 घंटों के दिन में , 8 घंटे का एक अनुष्ठान अधिष्ठान में चलता है । एक ऐसा कर्मकांड की जिससे स्थिर हुआ स्वास्थ्य स्वधर्म में मदद करता है । दिन के सापेक्ष में जितनी निवृत्ति रात्रि में रखते है बस वैसे है अष्टमास के सापेक्ष में चातुर्मास में भी निर्वृत्त रहना है । जैसे रात्रि में (सूर्यास्त के बाद) सम्पूर्ण निवृत्ति असंभव है वैसे ही चातुर्मास में सम्पूर्ण निवृत्ति नहीं हो पाएगी। यथा शक्ति, भगवद नाम में रत रहना है ।
Modern science has just realized value of circadian clocks in terms of day and night! It will take a decade or two to understand seasonal rhythms, seasonal day and night (चातुर्मास) . Will you wait for proofs to arrive or start following Sanatana rituals and experience the nectar?
आधुनिक विज्ञान ने अब तक मात्र सूर्य अनुसार शरीर में चलती घड़ी (circadian clocks) को ही समझा है । चातुर्मास , चंद्र मास, ऋतु आधारित circadian clocks के निष्कर्ष भी आएंगे । प्रमाण के लिए रुकोगे की सनातन परंपरा में जीवन ढालकर उसके अमृत फल चखोगे ?