Ayurveda and Cure Trajectory

Marut

Dharma

आयुर्वेद को हम एक विशिष्ट चश्मे से ही आँकलन करते है | आयुर्वेद अर्थात चूरन, काढ़ा और पंचकर्म ! बस ! इससे आगे कुछ नहीं ! और कभी कभी हम नेचरोपथी , घरेलू नुस्खे को भी आयुर्वेद का नाम दे देते है | इतना ही नहीं, कुछ भी हर्बल आयुर्वेद के नाम से बिकवा देते है 🙂 |

आयुर्वेद के प्रति समग्रता की दृष्टि विकसित करने पर ही हमें यह ईश्वर कृपा महत्व समझ आएगा !
आयुर्वेद ही नहीं कोई भी चिकित्सा प्रणाली में यह बताया जाता है की रोग को उसकी शिशु अवस्था में ही भाप लो ! जितना जल्दी दोष प्रकोप पकड़ में आएगा उतना ही सरल उपचार रहेगा |

यह चित्र में मैंने मेरी समझ से यह बात प्रस्तुत की है | X-अक्ष पर दोष प्रकोप की तीव्रता है और Y-अक्ष पर रोग की साध्य-असाध्य संभावना अंकित की है | जैसे जैसे दोष प्रकोप बढ़ेगा, वैसे वैसे रोग की असाध्यता भी बढ़ेगी ! हर एक स्तर की चिकित्सा भी अलग अलग होगी | सभी के लिए चूर्ण या पंचकर्म नहीं है ! 🙂 90% परिस्थिति में तो सदाचार + दिनचर्या +ऋतुचर्या से ही निवारण हो जाता है |

पिछले जन्मों के कर्मों के फल को छोड़कर बाकी सब रोग प्रज्ञा अपराध से ही होते है ( intellectual errors in taking decisions about living life, interacting with society etc) सदाचारी जीवन से रोग की अवस्था को टाला जा सकता है | साथ में यदि दिनचर्या और ऋतुचर्या आधारित जीवन पद्धति है तो यदि प्रज्ञा अपराध होता भी है तो शरीर अपनी प्राकृतिक स्थिति में स्वयं आने के प्रामाणिक प्रयत्न करता है | यदि यह सब करने पर भी रोग के लक्षण है तो ही औषध चिकित्सा करते है | औषध चिकित्सा कारगर न हो तो ही पंचकर्म चिकित्सा आवश्यक बनती है | और अंत में दो ही विकल्प रह जाते है – (1) प्राण संकट निवारण हेतु विशिष्ट चिकित्सा ( जी हाँ ! अलोपथी के जैसे आयुर्वेद में भी प्राण संकट निवारण चिकित्सा के विकल्प है ! वैद्य तपन कुमार जी का यह वीडियो उदाहरण के लिए सुनिए – He has shared his rich experience https://www.youtube.com/watch?v=S7xzBaPHB8c&t=1005s )

और दूसरा विकल्प है (2) असाध्य रोग – ऐसी परिस्थिति जिसका कोई उपचार नहीं | असाध्य के भी दो प्रकार है | (1) याप्य – जिसमे रोग का निवारण असाध्य है किन्तु उसके साथ जीवन कैसे जिया जाए वह शक्यता है| आजीवन सख्त दिनचर्या के साथ जीना ! प्रज्ञा अपराध का विकल्प नहीं ! (The way people manage many modern ailments like diabetes) (2) सर्वथा असाध्य – कोई शक्यता ही नहीं है की रोग का उपचार से निवारण हो !

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You can also my Vaidya mitra ‘s article in Gujarati about the same topic:

https://sidhikhabar.com/news/aayurgatha-by-vaidy-parth-thakkar-for-twenty-eight-dec-twenty

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(Old note on incurable conditions and Ayurveda from www.prachodayat.in)

Ayurveda is the only medical science that accepts death as natural event and never strive to avoid it. Such events are called असाध्य (incurable).

Modern medical science?

Pseudo charlatan tricks as if it has magic wand to save you

जन्म,मृत्यु,जरा,व्याधि are natural and unavoidable. मृत्यु – you can (not all can though) delay by slowing down जरा but it is important to die (Why? Separate discussion). Even Bhagwan dies here. Ayurveda resolves व्याधि and at the most can slows down जरा (Not all can though. why? selarate discussion).

In my limited understanding, genuine Ayurvedacharya knows both Jyotish and Ayurveda very well. And due to this, he will never ever claim all conditions as साध्य. There is category of असाध्य conditions too.

जन्म,मृत्यु,जरा,व्याधि are natural and unavoidable. मृत्यु – you can (not all can though) delay by slowing down जरा but it is important to die Even Avtar dies here. Ayurveda resolves व्याधि and at the most can slows down जरा. And chief purpose of Ayurveda is not to save life but help you live peacefully with billion+ cells and 3-4 times more bacteria and viruses in physical body, revere them and pray them to help us in performing our dharma with minimum possible hassles during this life span so that there are less hurdles in self-realization, which I believe is a purpose of human birth.

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