जैसे पिछले सूत्र में समझा, क्लेश के सभी रूप का मूल अविद्या है | जीवन में निरंतर बहते सभी क्लेश की गंगोत्री अविद्या नामक क्लेश ही है | सभी कर्म और संस्कार के समूह के मूल में भी अविद्या है |
जैसे अमित्र शब्द में मित्र के अभाव की नहीं अपितु मित्र के विरोधी अर्थात शत्रु की बात है , वैसे ही अविद्या अर्थात विद्या का अभाव नहीं परंतु विद्या का विरोधी अन्य ज्ञान ! अज्ञान न तो प्रमाण है , न तो प्रमाण का अभाव – ज्ञान का प्रतिबिंब की जो ज्ञान के विरोध में है |
**अविद्या का स्वरूप क्या है ?**
### अनित्याशुचिदुःखानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या।।2.5।।
अनित्य को नित्य समझना, अपवित्र को पवित्र जानना, दुःखमय को सुखमय और अनात्म पदार्थों को आत्मा स्वरूप समझना – यहीं अविद्या है |
(१ ) अनित्ये कार्ये नित्यख्यातिः। – यह चंद्र, पृथ्वी, सूर्य सब नित्य है
(२) इति अशुचौ शरीरे शुचिख्यातिर्दृश्यते। – मल – मूत्र ग्रसित शरीर को पवित्र समझना
(३) तथा दुःखे सुखख्यातिं वक्ष्यति | – प्रेय और श्रेय का भेद न जानने से प्रेय भोगी रहना | प्रेय को ही श्रेय समझना |
(४) तथाऽनात्मन्यात्मख्यातिर्बाह्योपकरणेषु चेतनाचेतनेषु भोगाधिष्ठाने वा शरीरे पुरुषोपकरणे वा मनस्यनात्मन्यात्मख्यातिरिति। – मन, बुद्धि, अहंकार को ही आत्मा समझना | देहाभिमान का होना ही अविद्या की उपस्थिति द्योतक है |
ऐसा क्यूँ हो रहा है ? शिक्षण होने पर भी क्यूँ लोग अविद्या के शिकार है ?
जो मूढ़ है उनकी तो सीमा है की ज्ञान\विद्या प्राप्ति साधन की श्रेष्ठता के अभाव में दुष्कर है |
परंतु जो शरीर\बुद्धि\मन रूपी साधनों से सम्पन्न है वह भी अविद्या के शिकार क्यूँ?
स्वाध्याय का अभाव
अच्छा जो स्वाधाय करते है उनके जीवन में भी अविद्या कभी कभी प्रदर्शित हो जाती है , ऐसा क्यूँ ?
महाभारत में कुबेर-युधिस्थिर संवाद में कार्य सिद्धि हेतु की बात की है [१] जिसमे एक है धैर्य! स्वाध्याय में धैर्य के अभाव से अविद्या विकसित होती है | धैर्य के अभाव से पूर्ण रूप से शास्त्र अभ्यास नहीं होता | श्रावण होता होगा तो चिंतन के लिए समय ही नहीं ! निदिध्यासन तो भूल ही जाओ | व्यवहार में , हमने जीवन इतना व्यस्त बना लिया है , multitasking के कारण मन भी विक्षिप्त रहता है और हमें कोई भी समस्या का निष्कर्ष तुरंत ही चाहिए | ऐसी परिस्थिति में विद्या रूपी परिपक्व न हो मात्र अविद्या रूप से रहती है |
Insufficient data, wrong data or insufficiency experience – destined for ignorance!
[१]
युधिष्ठिर धृतिर्दाक्ष्यं देशकालपराक्रमाः । लोकतन्त्रविधानानामेष पञ्चविधो विधिः ।।
युधिष्ठिर! धैर्य, दक्षता, देश, काल और पराक्रम—ये पाँच लौकिक कार्योंकी सिद्धिके हेतु हैं ।।