YogaSutra : Sadhana Pada : Sutra 3 and 4

Marut

Dharma

पिछली टिप्पणी से ही क्लेश पर ध्यान गया है | क्लेश को हल्का या न्यून करने हेतु क्रिया योग है | क्लेश कौन कौन से है ?
पाँच है
(१) अविद्या – स्व के स्वरूप ज्ञान का अभाव
(२) अस्मिता – अहंकार
(३) राग – आसक्ति
(४) द्वेष – वैमनस्य
(५) अभिनिवेश – अस्तित्व टिकाने की वृत्ति , मृत्यु का भय
यदि चित्त मिथ्या ज्ञान (क्लेश वृत्ति) से भरा है तो जब तक उनके निकालने का मार्ग नहीं ढूंढ नहीं लेते तब तक उनका ही साम्राज्य रहेगा | कर्म और फल के चक्र को वेग ही क्लेश देते है | क्लेश है तो कर्म फल है | फल है तो भोक्ता है | भोक्ता है तब तक जीवन मुक्त नहीं | समाधि नहीं |
यदि कक्ष गंध से भर गया है तो मात्र कक्ष में खिड़की खोलने से नहीं चलेगा | गंध के स्रोत को भी नष्ट करना पड़ेगा | सभी क्लेशों का मूल है अविद्या | अविद्या को ज्ञान रूपी अग्नि से दग्ध कर बीज सहित नष्ट करने हेतु न्यून करना ही क्रिया योग का काम है |
अविद्या बंधन का मूल बीज है | क्लेशों चार अवस्था में होते है – प्रसुप्तनुविच्छिन्नोदाराणाम् |
(१) प्रसुप्त – क्लेश का बीज भाव जो विषय की अनुपस्थिति में सुप्त होता है
(२) तनु – क्रिया योग के विरोध से न्यून हुए क्लेश की स्थिति
(३ ) विच्छिन्न – बार बार रुक रुक के प्रकट होने वाले क्लेश की स्थिति
(४) उदार – विषय प्रति जो क्लेश स्वरूपतः प्रकट होता है
क्लेश लुकछिपी खेलते रहते है | कुछ साधकों में क्लेश प्रसुप्त रहते है परंतु जैसे ही विषय संपर्क होता है , वह जागृत हो जाते है | साधक फिर से क्रिया योग रूपी साधन से क्लेश का तनुकरण कर देता है | ऐसे ही विच्छिन्न अवस्था में क्लेश आते जाते रहते है | ऐसा कब तक ? जब तक विवेकख्याति अवस्था प्राप्त नहीं होती !
अविद्या बाकी के क्लेशों की, सभी अवस्था के लिए , प्रसव भूमि है | अविद्या नष्ट होने पर बाकी सब क्लेश नष्ट होते है |
प्रभु हमें सदा साधना में रत रखें ! क्लेश सदा प्रसुप्त या तनु अवस्था में रहें और शनै शनै अविद्या रूपी बीज का ही नाश हो ! शुभ रात्रि ! 🙏

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