पिछले सूत्र में बताया गया था कि जो दुःख हमें अभी तक नहीं मिला है अर्थात भविष्य में आने वाला जो दुःख है उससे ही बचा जा सकता है ।
२.१७ से २.२६ सूत्रों तक यह दुःख को विस्तार से समझाया गया है । जैसे आयुर्वेद में रोग, रोग का हेतु समझने से योग्य औषध से नीरोगता प्राप्त होने का सिद्धांत है वैसे ही यहाँ दुःख, दुःख का कारण, मोक्ष और मोक्ष उपाय कि बात होगी ।
2.17 बात करता है दुःख के मूल का । दुःख का मूल है दृश्य और दृष्टा का संयोग । दो शब्दों को समझना है – दृष्टा और दृश्य । २.१७ से २.२६ में विस्तार से समझ मिलेगी । दृष्टा के संयोग में दृश्य आनेपर दुःख उत्पन्न होता है । दुःख का प्रतिकार करना है तो दुःख के हेतु का प्रतिकार करना पड़ेगा । पैर में कांटा चुभने से होनेवाली पीड़ा से बचने हेतु चंपाल पहनने पड़ेंगे वैसे ही दुःख का हेतु अर्थात दृष्टा और दृश्य के संयोग को समझना है तो उनके भेद को समझना पड़ेगा ।
क्रमश: