हेयं दुःखमनागतम्।।2.16।।
हेयं – त्याज्य , त्यागने योग्य
अनागतम् – भविष्य में उत्पन्न होने वाले , अभी तक जिनका प्रादुर्भाव नहीं हुआ है !
जो दुःख हमें अभी तक नहीं मिला है अर्थात भविष्य में आने वाला जो दुःख है उससे ही बचा जा सकता है ।
जो सामान्य मनुष्य है उनको भूतकाल के दुःख और वर्तमान के दुःख क्लेश रूपी पीड़ा देते है | किन्तु योग के साधक को भूतकाल और वर्तमान काल के दुःख पीड़ा नहीं देते , वह उन दुःखों को तप से सह लेता है | योगी को भविष्य के दुःख की पीड़ा होती है | कर्माशय के बनते रहने की पीड़ा रहती है | ऐसे अनागतम दुःख को त्याग ना है | जो साधक है वही तो भविष्य की चिंता कर सकता है | प्राणी रूपी अन्य मनुष्य और प्राणी राजस और तमस के प्रभाव में वर्तमान के कर्मों का भविष्य में क्या होगा वह सोचते ही नहीं ! जो साधक है उसको भविष्य के दुःख त्याग ने है |
जो वर्तमान के दुःख है उनको तो सहन करना है | जैसे की चित्र में बताया है – यदि आप कोई उच्च स्थान से गिरते हो तो एक बार गिरना प्रारंभ हुआ तो उसे टाल नहीं सकते | गिरने से लगने वाली चोट सहन करनी ही है ! किन्तु यदि आप सत्व युक्त बुद्धि से जीवन के सभी कर्म संभाल कर करने लगते हो , तो कर्माशय बनेगा ही नहीं और भविष्य के क्लेशों को टाल सकते है !
जो तामसिक है वह कुछ नहीं सोचता | वासना प्रेरित कर्म कर्ता रहता है |
जो राजसिक है वह कर्म करके पश्चाताप करता है |
जो सात्विक है वह अपने कर्म की अन्यों पर होने वाली असर और अपने कर्माशय को ध्यान में रखकर अनासक्त रह , निष्काम कर्म करते रहता है !
शुभ प्रभात 🙏