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क्लेशमूलः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीयः।।2.12।।
क्लेशमूलक कर्माशय के दो प्रकार है | एक जो वर्तमान जन्म में ही फलीभूत होने लगता है और दूसरा जो आनेवाले जन्मों में फलीभूत होगा |
सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः।।2.13।।
क्लेश मूल रह जाने से जन्म,आयु,भोग रूपी कर्माशय के फल प्राप्त होते है !
ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्।।2.14।।
पुण्य और पाप जन होने के कारण सुख और दुःख देनेवाले होते है कर्माशय के फल !
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पिछले कुछ सूत्रों में क्लेश रहित कैसे होना उसके मार्ग के बात की थी | क्लेश रहित असंप्रज्ञात समाधि दुर्लभ है | तब तक, हम सब कर्माशय के साथ ही जीवन जी रहें है ! जब तक क्लेश के मूल है तब तक कर्माशय है और कर्म के फल भी !
क्लेश के फल तीन प्रकार के है | और फल की अनुभूति दो प्रकार की !
(1) जन्म (जी हाँ! जन्मना! याद आया ? इस विषय पर सनातनियों में सबसे अधिक सोशल मीडिया में वाद विवाद होता है! :d अभी आप नकार नहीं सकते ! योग करते हो, पतंजलि ऋषि में श्रद्धा है तो जन्म भी पूर्व कर्म आधारित है यह मानना पड़ेगा! श्रद्धा से )
(2) आयु (जी हाँ ! आजकल आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को भ्रम सा है की आयु निर्धारण मनुष्य मशीन से कर पाएगा ! )
(3) भोग (जी हाँ – भोगयुग में तो हम वर्तमान में है !)
जन्म, आयु और भोग दो प्रकार की फलानुभूति देते है (1) सुख और (2) दुःख
(वास्तव में दुःख ही है — अगले सूत्र में समझेंगे)
इन तीन फल में
=> जन्म रूपी फल अदृष्टजन्मवेदनीय (to realize in upcoming births).
=> आयु दृष्टजन्मवेदनीय एवं अदृष्टजन्मवेदनीय दोनों है – आप के कर्म इस जन्म की आयु न्यून \ वृद्धि कर सकते है और आनेवाले जन्मों की आयु भी निर्धारित कर सकते है !
=> भोग भी दृष्टजन्मवेदनीय एवं अदृष्टजन्मवेदनीय दोनों है!
तीव्र धर्म भावना से किए गए मंत्र जप , तपस्या और समाधि से की गई ईश्वर आराधना पुण्य कर्म है और ऐसे पुण्य कर्म त्वरित फल देते है !
वैसे अविद्या से किए गए पाप कर्म भी त्वरित फल देते है !
मनुष्य जन्म मिला है तो यह एक अमूल्य अवसर है प्रारब्ध रूपी कर्माशय को क्षीण करने का और साथ साथ नए सभी कर्म (कर्म किए बिना तो कोई भी रह नहीं सकता!) क्लेश बिना ही करना सीखने का !
जीवन रूपी अनंत यात्रा में दो और कदम आगे ! अनंत चतुर्दशी की शुभकामना !