पतंजलि योगसूत्र सबके लिए है | एकाग्रचित्त वाले सात्विक मनुष्य के लिए समाधि पाद से अभ्यास प्रारंभ होता है | हमारे जैसे चंचल (राजसिक + तामसिक) चित्त के लिए साधन पाद से | पतंजलि भगवान की कृपा से हम जैसे चंचल चित्त भी योगी बन सकते है ऐसा आत्म विश्वास साधन पाद के अभ्यास से मिलता है | इस चातुर्मास अंतर्गत, योग सूत्र का अभ्यास चल रहा है | जो कुछ समझ आएगा, सहृदयी मित्रों से सांझा करने का प्रयत्न करूंगा |
तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।।2.1।।
तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान के संयोजन को क्रिया योग कहते है |
नातपस्विनो योगः सिध्यति। – अतपस्वी का योग सिद्ध नहीं होता | राजस और तमस के आवरण से युक्त चित्त को बिना तपस्या शुद्ध नहीं कर सकते | तप के साथ करना है स्वाध्याय | और अंत में बात की है ईश्वर प्रणिधान की | कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग , तीनों का अभ्यास एक साथ, समांतर करना है? | जिसे क्रिया योग कहते है |
तप : शरीर शुद्धि : कर्म योग : यम, नियम, आसन, प्राणायाम
स्वाध्याय : वाक् शुद्धि : ज्ञान योग : मंत्र जप, शास्त्र अभ्यास (श्रवण, मनन, चिंतन)
ईश्वर प्रणिधान : चित्त शुद्धि : भक्ति योग : ध्यान , मूर्ति पूजा
शुभ रात्रि |