भगवान् श्री परशुरामजयन्त्याः हार्दिक शुभाशयाः
सात्विक मूर्ति
सात्विकं श्वेतवर्णं च भस्मोद्धूलितविग्रहं
अग्निहोत्रस्थलासीनं नानामुनिगणावृतम्।
कम्बलासनमारूढं स्वर्णतारकुशांगुलिम्
श्वेतवस्त्रद्वयोपेतं जुह्वन्तं शान्तमानसम्।
भगवान् परशुराम सात्विक रूप में गौरवर्णी, भस्म लगाये हैं और बहुत से मुनियों के साथ यज्ञमण्डप में बैठे हैं। कम्बल के आसन पर विराजमान हैं, स्वर्ण व कुश की पवित्री अंगुलियों में सज रही है। श्वेतवस्त्र धारण किये वे जमदग्निपुत्र शान्तमन से आहुतियाँ दे रहे हैं।
राजसिक रूप
ध्यायेच्च राजसं रामं कुंकुमारुणविग्रहं
किरीटिनं कुण्डलिनं परश्वब्जवराभयान्।
करैर्दधन्तं तरुणं विप्रक्षत्रौघसम्वृतम्
पीताम्बरधरं कामरूपं बालानिरीक्षितम्।
उन राजसी परशुराम का ध्यान करता हूँ जिनकी अंगकान्ति कुमकुम जैसी है, शिर पर किरीट व कानों में कुण्डल हैं तथा शरीर पर पीताम्बर शोभा पाता है।चारों भुजाओं में परशु, कमल, वर एवं अभय धारण किये हैं। ब्राह्मणों व क्षत्रियों से घिरे हैं। उनका रूप अत्यद्भुत कमनीय है, राजकुमारियाँ उन्हें निरख कर स्वयं को अहोभाग्य समझती हैं।
तामसिक रूप
ध्यायेच्च तामसं क्षत्ररुधिराक्तपरश्वधम्
आरक्तनेत्रं कर्णस्थब्रह्मसूत्रं यमप्रभम्।
धनुष्टंकारसंघोष-सन्त्रस्त-भुवनत्रयम्
चतुर्बाहुं मुशलिनं संक्रुद्ध-भ्रातृसंयुम्।
भृगुवंशी परशुराम की तामस मूर्ति क्षत्रियों के रक्त से नहाये परशु द्वारा शोभायमान है। आँखें लाल व ब्रह्मसूत्र कान पर रखा है, साक्षात् यमराज सम प्रतीत होते हैं। धनुष की टंकार से समस्त त्रैलोक्य को कम्पा देने वाले वे भगवान् मुसल धारण किये प्रत्यक्ष क्रोधमूर्ति हैं व अपने भाइयों अर्थात् समस्त ब्राह्मणवर्ग का नेतृत्व करते हैं।