जलसेवन विधि में पात्र के आकार का महत्व – भाग 1
कुछ समय पूर्व जल-विवेक पर एक पोस्ट लिखी थी । उस पोस्ट के अंत में एक वाक्य था:
“न मात्र जलसेवन के लिए उपयोग में होनेवाले पात्र का मटीरीअल पर उसका आकार भी महत्वपूर्ण है । “
परसों, अन्न और जल, दोनों को चबाने के बात की थी ।
आईए यह तथ्य को समझते है ।
भूख \प्यास शारीरिक भी है और मानसिक भी है। जीतने समय अन्न और जल मुख में रहेगा उतना घ्राण इंद्रिय से अवगत होगा। जितना अधिक अवगत होगा, उतना जल्दी भूख \प्यास का मानसिक संतोष होगा। मानसिक संतोष के कारण ही हम भूख से अधिक भोजन और प्यास से अधिक पानी सेवन करते है जो की अनियमित क्लेद\आम निर्माण कर रोगों की अवस्था के निमित्त होते है ।
एक अन्य संशोधन अनुसार –
“पात्र के आकार के अनुसार, जल ग्रहण करने के बाद, कितना जल, कितने वेग से जीभ के स्वाद केंद्रों पर स्थायी होता है उस अनुसार जल का स्वाद बदलता है। यदि पात्र का आकार सँकरा होगा तो अधिक वेग से जल मुख में जाएगा, जिससे प्यास से अधिक जलसेवन इच्छा होगी (जैसे बोतल का मुख है) और इससे विपरीत, लौटे में, पात्र का मुख बड़ा होने पर निम्न मात्रा से भी तृप्तता की स्थिति आ जाती है। ”[2]
और स्वाद की तीव्रता से तृप्तता की अनुभूति कितनी त्वरित होगी वह निर्धारित होगा। पात्र के आकार से चयन होगा की आप प्यास से अधिक जल सेवन करोगे या यथेष्ट सेवन होगा। अधिक जल सेवन —> व्याधि निमंत्रण
अब सोचिए –
- क्यूँ बोतल से जल सेवन न करें?
- क्यूँ ठंडा जल सेवन न करें?
आदर्श क्या है? जल सेवन हेतु पात्र का मुख बड़ा हो और मुख में जल गिरने का वेग मंद हो । जल को मुख में अधिक समय रहें, और सभी स्वादइंद्रिय केंद्रों का स्पर्श हो इस विधि से सेवन हो।
“The mouth is the first part of the gastrointestinal tract. During mastication sensory signals from the mouth, so-called oro-sensory exposure, elicit physiological signals that affect satiation and food intake. It has been established that a longer duration of oro-sensory exposure leads to earlier satiation.”[1]
We have five senses: sight, taste, touch, smell and sound. Many of us rely on taste when it comes to food and drink, Riedel says, but it turns out it is the least reliable sense.
According to taste researcher Linda Bartoshuk, people have different amounts of taste receptors, or tastebuds, on their tongues; about half the population has 200 to 400 taste receptors per square centimetre, while 25 per cent are called “supertasters” because they have up to 1,000; the remaining 25 per cent are “non-tasters”, who have less than 200 taste receptors per square centimetre.
When we drink wine, Riedel explains, we rely on smell as part of our sensatory evaluation. But what happens when what you drink has no aroma – water, for instance?[2]
[1]
[2]