नमो नमः मित्राणि !
लकारों के क्रम में अभी तक आपने लट् लेट् लुङ् लङ् लिट् लिङ् और लोट् लकार के विषय में समझा। अब “लुट् लृट् लृङ् च भविष्यति ॥” अर्थात् लुट् लृट् और लृङ् लकारों के विषय जानना शेष रह गया है। ये तीनों लकार भविष्यत् काल के लिए प्रयुक्त होते हैं। किन्तु इनमें थोड़ी थोड़ी विशेषता है। अतः पृथक् पृथक् समझाते हैं। सर्वप्रथम लुट् लकार के विषय में चर्चा करते हैं।
१) यह लकार अनद्यतन भविष्यत् काल के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसा भविष्यत् जो आज न हो। कल, परसों या उसके भी आगे। आज वाले कार्यों के लिए इसका प्रयोग प्रायः नहीं होता। जैसे – ” वे कल विद्यालय में होंगे” = ते श्वः विद्यालये भवितारः।
भू धातु , लुट् लकार
भविता भवितारौ भवितारः
भवितासि भवितास्थः भवितास्थ
भवितास्मि भवितास्वः भवितास्मः
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शब्दकोश :
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‘वेदपाठी’ के नाम –
१] श्रोत्रियः (पुँल्लिङ्ग)
२] छान्दसः (पुँल्लिङ्ग)
आजीविका के लिए वेद पढ़ाने वाले के नाम –
१] उपाध्यायः (पुँल्लिङ्ग )
२] अध्यापकः (पुँल्लिङ्ग )
मुनियों की झोपड़ी के नाम –
१] पर्णशाला (स्त्रीलिङ्ग)
२] उटजः/उटजम् (पुँल्लिङ्ग/नपुंसकलिङ्ग)
* उटः = घास-फूस , और जो उससे बनाया जाए वह है ‘उटज’।
यज्ञशाला के नाम –
१] चैत्यम् (नपुंसकलिङ्ग)
२] आयतनम् (नपुंसकलिङ्ग)
आने वाला कल = श्वः
आने वाला परसों = परश्वः
* ये दोनों अव्यय हैं। अव्यय ज्यों के त्यों प्रयोग में लाये जाते हैं। विभक्ति द्वारा इनका रूप नहीं बदलता और न ही किसी लिङ्ग में रूप बदलता है, न ही वचन में।
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वाक्य अभ्यास :
यह मुनि कल उस झोपड़ी में होगा।
= अयं मुनिः श्वः तस्यां पर्णशालायां भविता।
वे दोनों वेदपाठी परसों उस यज्ञभवन में होंगे।
= अमू छान्दसौ परश्वः अमुष्मिन् चैत्ये भवितारौ।
वे वेदपाठी कल इन यज्ञशालाओं में होंगे।
= अमी श्रोत्रियाः श्वः एषु आयतनेषु भवितारः।
तुम परसों अध्यापक के साथ पर्णशाला में होगे।
= त्वं परश्वः उपाध्यायेन सह उटजे भवितासि।
तुम दोनों कल यज्ञशाला में होगे।
= युवां श्वः चैत्ये भवितास्थः।
वहाँ वेदपाठियों का सामगान होगा।
= तत्र छान्दसानां सामगानं भविता।
तुम सब परसों कुटिया में होगे।
= यूयं परश्वः उटजे भवितास्थ।
वहाँ अगदतन्त्र का व्याख्यान होगा।
= तत्र अगदतन्त्रस्य व्याख्यानं भविता।
मैं कल उस कुटी में होऊँगा।
= अहं श्वः तस्मिन् उटजे भवितास्मि।
उसी में दो उपाध्याय होंगे।
= तस्मिन् एव द्वौ उपाध्यायौ भवितारौ।
हम दोनों परसों उस चैत्य में नहीं होंगे।
= आवां परश्वः तस्मिन् चैत्ये न भवितास्वः।
हम सब कल वेदपाठियों की कुटी में होंगे।
= वयं श्वः छान्दसानाम् उटजेषु भवितास्मः ।
वहीं ऋग्वेद का जटापाठ होगा।
= तत्र एव ऋग्वेदस्य जटापाठः भविता।
उपाध्याय लोग भी वहीं होंगे।
= अध्यापकाः अपि तत्र एव भवितारः।
हम लोग भी वहीं होंगे।
= वयम् अपि तत्र एव भवितास्मः।
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श्लोक :
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न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
( श्रीमद्भगवद्गीता २।२०॥ )
उपर्युक्त श्लोक में ‘भविता’ पद भू धातु के लुट् लकार, प्रथमपुरुष एकवचन का रूप है।
पुस्तक में देखकर एक एक शब्द का अर्थ अपनी कापी में लिखें और मनन करें ।
॥ शिवोऽवतु ॥