संस्कृत साधना : पाठ ११ (अस्मद् ( मैं ) और युष्मद् ( तुम ))

Śyāmakiśora Miśra

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नमः संस्कृताय !
आज आपको अस्मद् ( मैं ) और युष्मद् ( तुम ) सर्वनामों के रूप बताएँगे और इनका वाक्यों में अभ्यास भी करवायेंगे। आज से आपको अमरकोष या आधुनिक शब्दकोशों से प्रतिदिन कुछ शब्द बताया करेंगे जिससे आपका शब्दभण्डार बढ़े। क्योंकि किसी भी भाषा को सीखने के लिए दो वस्तुएँ अनिवार्य हैं- व्याकरण और शब्दकोश। कहा जाता है न कि “अवैयाकरणस्त्वन्धः बधिरः कोशवर्जितः” अर्थात् व्याकरण न जानने वाला अन्धा है , वह साधु असाधु शब्दों में भेद नहीं कर सकता और शब्दकोश के बिना बधिर, न वह अपने विचार अच्छी प्रकार व्यक्त कर सकता है और न ही दूसरों के विचार समझ सकता है। इसलिए अपना शब्दभण्डार बढ़ाते रहिये। संस्कृतभाषा में संसार के सबसे अधिक शब्द हैं। इसे ‘शब्दसन्दोहप्रसविनी’ अर्थात् ‘शब्दों के समूहों को उत्पन्न करने वाली’ कहा जाता है।

१ ) अस्मद् और युष्मद् के रूप तीनों लिंगों में एक जैसे होते हैं ।

अस्मद्

अहम् आवाम् वयम्
माम्/मा आवाम्/नौ अस्मान्/नः
मया आवाभ्याम् अस्माभिः
मह्यम्/मे आवाभ्याम्/नौ अस्मभ्यम्/नः
मत् आवाभ्याम् अस्मत्
मम/मे आवयोः/नौ अस्माकम्/नः
मयि आवयोः अस्मासु

युष्मद्

त्वम् युवाम् यूयम्
त्वाम्/त्वा युवाम्/वाम् युष्मान्/वः
त्वया युवाभ्याम् युष्माभिः
तुभ्यम्/ते युवाभ्याम्/वाम् युष्मभ्यम्/वः
त्वत् युवाभ्याम् युष्मत्
तव/ते युवयोः/वाम् युष्माकम्/वः
त्वयि युवयोः युष्मासु
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शब्दकोश :
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मिठाइयाँ, खाद्य /मिष्टान्नानि, खाद्याः

1) रसगुल्ला – रसगोलः
2) लड्डू – मोदकम्
3) जलेबी – कुण्डलिका,
4) खीर – पायसम्
5) बर्फी – हैमी
6) रबड़ी – कूर्चिका
7) श्रीखंड – श्रीखण्डम्

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वाक्य अभ्यास :
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तुम दोनों मुझे खीर देते हो।
= युवां मह्यं पायसं यच्छथः। ( यच्छ् – देना )

हम दोनों तुम सबको सेवइयाँ देते हैं।
= आवां युष्मभ्यं सूत्रिकाः यच्छावः।

क्या तुझमें बुद्धि नहीं है ?
= किं त्वयि बुद्धिः नास्ति ?

मुझमें बुद्धि है, तुम क्यों कुपित होते हो ?
= मयि बुद्धिः अस्ति, त्वं कथं कुपितः भवसि ?

तुम ये मिठाईयाँ अकेले ही खाते हो ?
= त्वम् इमानि मिष्टान्नानि एकाकी एव खादसि ?

हाँ, क्यों ?
= आम्, कथमिव ?

क्या तुम शास्त्र का यह वाक्य नहीं मानते ?
= किं त्वं शास्त्रस्य इदं वाक्यं न मन्यसे ?

कि- “स्वादिष्ट चीज अकेले नहीं खानी चाहिए”- ऐसा।
= यत् – “एकः स्वादु न भुञ्जीत” इति।

ओह ! अब समझा !
= अहो ! इदानीम् अवगतम् !

ये रसगुल्ले हम दोनों के हैं।
= इमे रसगोलाः आवयोः सन्ति।

किन्तु ये लड्डू हमारे नहीं हैं।
= किन्तु इमानि मोदकानि आवयोः न सन्ति।

ये मीठी जलेबियाँ तुम्हारी ही हैं।
= इमाः मधुराः कुण्डलिकाः तव एव सन्ति।

मैं तो इन्हें तुम्हें भी देता हूँ।
= अहं तु इमाः तुभ्यम् अपि ददामि।

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श्लोक :

दैवी ह्येषा गुणमयी
मम माया दुरत्यया।
माम् एव ये प्रपद्यन्ते
मायाम् एतां तरन्ति ते॥

( श्रीमद्भगवद्गीता 7.14 )

॥शिवोऽवतु॥

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