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Seeds of democracy
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ओम् सं समिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ।
इलस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर ||
सग्ङ्च्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देव भागं यथा पूर्वे सं जानाना उपासते ||
समानो मन्त्रः समितिः समानी मनः सह चित्तेषाम्।
समानं मन्त्रभिमन्त्रये वः समानेन वा हविषा जुहोमि ||
समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ||
हे प्रभो! तुम शक्तिशाली हो बनाते सृष्टि को । वेद सब गाते तुम्हें हैं कीजिये धन वृष्टि को ||
प्रेम से मिलकर चलो बोलो सभी ज्ञानी बनो। पूर्वजों की भांति तुम कर्तव्य के मानी बनो ||
हों विचार समान सब के चित्त मन सब एक हों । ज्ञान देता हूँ बराबर भोग्य पा सब नेक हों ||
हों सभी के दिल तथा संकल्प अवरोधी सदा ।मन भरे हों प्रेम से जिस से बढ़े सुख सम्पदा ||