Role of Spiritual pursuits in healing

Marut

Dharma

 

एक मित्र का संदेश था| विविध वैद्य गण से संपर्क किया और विविध उपचार भी प्रारंभ किए किन्तु रोग की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं है |

एक कारण अश्रद्धा का है | औषध प्रति अरुचि और वैद्य की चिकित्सकीय कौशल पर शंका से उपचार की प्रभावशीलता न्यून हो जाती है। मित्र के केस में यह बात भी नहीं थी |

तो क्या कर सकते है ?

औषधे चिन्तयेद्विष्णुं
भोजने च जनार्दनम् ।
शयने पद्मनाभं च
विवाहे च प्रजापतिम् ॥१॥
Think of Vishnu while taking medicine, Janardana while eating¸ Padmanabha while lying down (to sleep) and Prajapati while getting married.

जब रोग का मूल मन या चित्त में है तो नाम जप कार्य कर सकता है| मैने उनको विष्णु नाम जप करने को बताया | और स्वयं भी उनके अच्छे स्वास्थ्य हेतु , स्वधर्म अंतर्गत जप संकल्प लिया |

विष्णुर्विक्रमणात्’ (महाभारत उद्योग पर्व ७०/१३) इति व्यासोक्तेः He is Vishnu because he moves(spreads) in all directions – vide words of Bhagavan Vedavayasa quoted above.

वेवेष्टि व्याप्नोतीति विष्णुः देशकालवस्तुपरिच्छेदशून्य इत्यर्थः One who pervades everything, unlimited by space, time or object is Vishnu विशतीति विष्णुः Enters (विशति) (all living beings as the indwelling spirit), therefore the Lord is known as Vishnu. shruti also says ‘तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्’ having created the world, He entered it (as the jivatma)

जप से चित्त क्रियाशील और आत्म केंद्रित हो और केंद्रित मन से अग्नि प्रज्ज्वलित हो !

एक पुरानी नोट इस विषय पर :

The Vishnu Experiment : Chanting Name on Different Events

कोई भी औषध के साथ देव उपासना अचूक करनी चाहिए ! जहां जहां चरक भगवान ने चिकित्सा की बात की है वहाँ देव उपासना रूपी चिकित्सा को प्रथम रखा है !
Take any medicines but if you fail to keep faith in Deva, it will not work much.
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वायुः पित्तं कफश्चोक्तः शारीरो दोषसङ्ग्रहः|
मानसः पुनरुद्दिष्टो रजश्च तम एव च||
Vayu, pitta and kapha are described as bodily dosha, rajas and tamas are the mental ones.
प्रशाम्यत्यौषधैः पूर्वो दैवयुक्तिव्यपाश्रयैः|
मानसो ज्ञानविज्ञानधैर्यस्मृतिसमाधिभिः|
The former ones (sharira dosha) are pacified by remedial measures of divine and rational qualities while the latter ones (manas dosha) can be treated with knowledge of self (jnana), scientific knowledge (vijnana), restraint/temperance (dhairya), memory (smriti) and salvation/concentration (samadhi).
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त्रिविधमौषधमिति- दैवव्यपाश्रयं, युक्तिव्यपाश्रयं, सत्त्वावजयश्च| तत्र दैवव्यपाश्रयं- मन्त्रौषधिमणिमङ्गलबल्युपहारहोमनियमप्रायश्चित्तोपवासस्वस्त्ययनप्रणिपातगमनादि,युक्तिव्यपाश्रयं- पुनराहारौषधद्रव्याणां योजना, सत्त्वावजयः- पुनरहितेभ्योऽर्थेभ्यो मनोनिग्रहः||५४||
There are three kinds of treatment modalities- Daivavyapashraya (divine or spiritual therapy), yuktivyapashraya (therapy based on reasoning) and satwavajaya (psychotherapy). Daivavyapashraya includes mantra chanting, medicine, wearing gems, auspicious offerings, oblations, gifts, offerings to sacred fire, following spiritual rules, atonement, fasting, chanting of auspicious hymns, obeisance to gods, visit to holy places, etc. Yuktivyapashyraya includes proper dietetic regimen, medicine planning. Sattvavajaya is withdrawal of mind from harmful objects.

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