दिन के 8 घंटे (इससे अधिक ही जा रहे है) यदि अर्थोपार्जन के लिए देते हो तो 25 से 50 के गृहस्थ आश्रम के 10-11 वर्ष चले गए, उतने ही वर्ष निद्रामनोरंजनकाम हेतु गए।२५ वर्ष में से , धर्म और मोक्ष के लिए मात्र 1.5-1.5 वर्ष? यदि अर्थोपार्जन और काम के मूल में धर्म नहीं तो गृहस्थाश्रम धन्य कैसे होगा?
२४ घंटों का ऐसा विभाजन हो की धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष प्राप्ति में संतुलन हो।
Be it job or business, if there is no evolvement, involvement is waste. Demands continuous स्व-अध्ययन for best possible outcomes. If we want to bring back sanity to the world, we need to revive practice and lifestyle that encourage balance of 4 purushartha.