दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै । ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः ॥ १२॥
कृष्णायै सततं नमः ।
माँ भगवती के विविध स्वरूप का निरंतर स्मरण करना चाहिए। ऐसे कुछ रूपों में से एक रूप है कृष्ण स्वरूप। कुछ दुर्गा सप्तशती टीकाकार, कृष्ण का वर्ण रूप में निरूपण करते है तो कुछ माँ के कृष्ण अवतार स्वरूप को स्वीकार करते है । श्रीकृष्ण की लीलास्थली वृंदावन में एक ऐसा मंदिर विद्यमान है, जहां कृष्ण की काली रूप में पूजा होती है। उन्हें काली देवी कहा जाता है। कृष्णकाली माँ काली का स्वरूप, तंत्र मार्ग में प्रचलित भी है । कृष्णकाली ही कालरात्रि है।
दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी – काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री , धूम्रवर्णा कालरात्रि मां के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं |
कृष्णकाली भी कालरात्रि है ।
कृष्ण स्वरूप देखने भयंकर लगता है किन्तु मेरी दृष्टि से कृष्णकाली ओजस-तेज का अव्यक्त पुंज है जो सदा हमें असीमित रूप से सदा आकर्षित करता है ।
कृष्टि ओजस | (ऋग्वेद) – Increase your vigor(ओजस) to such a level that your enemies will get attracted (कृष्टि) towards you and surrender.
कृष्टि – Viral attractionओजस- Vigor
To attack and destroy is one way. To attract and destroy is another way.
कृष्णकाली अपने आकर्षण से ही साधक स्थित अधर्म/विकार का नाश करती है ।