नामकरण विज्ञान – प्रकृति परीक्षण, पितृ और नामकरण

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Dharma, Naming, Sanskar, Sanskara

नामकरण विज्ञान – प्रकृति परीक्षण, पितृ और नामकरण

आजकल आयुर्वेदिक डॉक्टर रोगी का प्रकृति परीक्षण करते है जोकि अशास्त्रीय है। वास्तव में प्रकृति परीक्षण जन्म पश्चात प्रथम 10-12 दिन में ही शक्य है । अन्यथा तो दोष प्रकृति परीक्षण होता है ।

कितनी अद्भुत व्यवस्था थी भारत भूमि की ! जन्म से प्रथम 12 दिन में प्रकृति परीक्षण हो और प्रकृति अनुसार ही नामकरण भी 10 वे दिन बीतने पर होता था ।

नामकरण के भी नियम थे । आजकल अलग नाम के चक्कर में चल रहा है वह सच में पीड़ा देता है । नाम से भी स्वास्थ्य स्थिर रह सकता है !

पतंजलि ऋषि के व्याकरण महाभाष्य से, नाम करण के कुछ नियम

दशम्यां पुत्रस्य।–

याज्ञिका: एवं वदन्ति यद् जातस्य दशमदिनाद् ऊर्ध्वं पुत्रस्य नामकरणसंस्कार: करणीय:। नाम एवं भवेत्- आदिममक्षरं घोषव्यञ्जनं स्यात्।मध्यममक्षरम् अन्त:स्थव्यञ्जनं स्यात्,नाम कृदन्तं स्यात्, तद्धितान्तं न स्यात्, वृद्धं न स्यात्। एतत् सर्वं व्याकरणज्ञानं विना न शक्यमत: अध्येयं व्याकरणम्।

  • जन्म से 10 वी रात्रि बीतने पर नाम करण हो (प्रकृति परीक्षण पश्चात, प्रकृति, राशि, नक्षत्र अनुसार) – वर्ण-बल वृद्धि हेतु योग्य नाम हो
  • तीन पूर्व पीढ़ी के पुरुषों के नाम का स्मरण हो ऐसा नाम हो – पितृ प्राण अनुरूप नाम हो !
  • शत्रु नाम स्मरण न हो ऐसा नाम हो
  • नाम दो या चार अक्षर वाला हो – स्वर शास्त्र अनुरूप नाम होने पर सतत बोलने वाले परिवार के लोगों की मनोस्थिति हमेशा सम्यक रहें ।
  • नाम कृदंत हो
  • नाम तद्धितांत न हो
  • आदि(प्रारंभ में) घोषवान वर्ण हो
  • मध्य में अंतःस्थ वर्ण हो और वृद्धि स्वर (आ ,ऐ औ) न हो

प्रत्येक बिन्दु पर मंथन करने पर समझ आएगा नामकरण विज्ञान ।

अब सोचो उस समाज की स्थिति जहां नाम करण इतने वैज्ञानिक स्तर से हो ! आजकल का मनोविज्ञान तो मानो ऋषि प्रणीत शास्त्रों के सामने एकदम बालबुद्धि लग रहा है !

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