Motherhood is carrier of culture

Marut

Motherhood

मातृत्व है तो संस्कृति है

जिस माँ की कोख से हमारा प्रादुर्भाव हुआ है,उसे सामान्य न समझो। कोख के विकास निमित्त वातावरण(भाषा,आहार,उत्सव,परिवेश). अर्थात माता बनने से पहले , बालिका (हमारी माताजी) के जन्म से , जो जो उन्होंने अनुभव किया है, जो जो देश काल में विकास किया है, उस के अनुरूप जीवन जी कर हम अपने आत्म-साक्षात्कार के मार्ग को आधी-व्याधि-उपाधि रूपी बाधाओ से बचा सकते है!

तो भाई, आहार-विहार से लेकर मनोरंजन तक – सब कुछ मातृवत यानि लोकल यानि देशगत होना चाहिए ।

यदि आज आपकी बिटिया छिछोरे उत्सव में सेल्फ़ी से आनंदित होती है तो आप के आनेवाले पौत्र-पुत्री भी वैसे हो मनोरंजन की चाह रखेंगे।

भारतीय संस्कृति आजतक काल के थापट को सहन कर जीवंत है क्यूंकी मातृत्व जीवंत है और मातृत्व से संस्कृति जीवंत है । आधुनिक शिक्षण, मीडिया और फेमिनिज़म के वातावरण से अपनी बालिका को रक्षण दे कर शिक्षण देने का , जो मातापिता तप कर रहे है बस उनसे ही हमारा भविष्य है! आप बालिका के मातापिता है तो आप भाग्यवान हो – आप से ही संस्कृति का भविष्य है!

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