आज कल के दंभी या अज्ञानी हिन्दू का उवाच:
“में गीता में मानता हूँ, कृष्ण भक्त हूँ परन्तु में भुत,पितर,देवता के अस्तित्वको नहीं मानता! आखिर में पढ़ा लिखा नौजवान हूँ! अंधश्रद्धा से कोसो दूर!”
अज्ञान के वश में हो तो अज्ञान दूर किया जा सकता है परन्तु अगर दंभ है तो उपाय मुश्किल है! श्री कृष्ण ही आपका उपाय करे!
देवता, पितर आदि का ज्ञान नहीं है तो अभ्यास करो, सत्संग कर समझो! आपकी अश्रद्धा से आप विज्ञान से दूर जा रहे हो ! भुत,पितर,देवता भारतीय विज्ञान की परिभाषा में हमारे अस्तित्व का ही भाग है ! आयुर्वेदीय चिकित्सा का आधार है ! न अधिक न न्यून भेद (Instead of identifying 1000s of micro elements of body, just few distinctions like Kapha, PItta, Vata or Bhuta, Pitar, Devta) से भी विज्ञान समझा जा सकता है !
In picture, 33 देवता are shown in Gau’s body! Same way, they reside in our body too!
You and me exist because of their blessings! And if we don’t take care of them, we are the thieves!