सभी कर्मकांड में पति-पत्नी साथ क्यूँ?
द्विविधा तेजसो वृत्तिः सूर्यात्मा चानलात्मिका ।
तथैव रसशक्तिश्र सोमात्मा चानलात्मिका ॥5॥
सूर्य और अग्नि के भेद से जिस तरह तेज की वृत्ति दो प्रकार की होती हे, उसी प्रकार रसशक्ति भी सोमात्मिका और अनलात्मिका के भेद से दो प्रकार की होती हे । – बृहज्जाबालोपनिषत्
पति सोम रूप , अग्नि से रक्षित है और पत्नी अग्नि रूप, सोम से रक्षित है ।
अग्नि-सोम के संतुलन से ही गृहस्थ संतुलन शक्य है ।
अग्नि के रक्षण हेतु पत्नी को सोम स्वभावी और सोम के रक्षण हेतु पति को अग्नि स्वभावी रहना है
पति सोम निश्चित ही है किन्तु सोम का पोषण अग्नि से होता है
पत्नी अग्नि निश्चित ही है किन्तु अग्नि का पोषण सोम से होता है
सोमरूपी भाव\संवेदना\शुभ संकल्प\कल्याणकारी कर्मसे पुष्ट जीवन प्रदान करे वह पत्नी ।
अपने ताप से आधि\व्याधि\उपाधि दूर करें वह पति ।
जहां अग्नि प्रमुख है (अग्नि पूजा, सूर्य पूजा) वहां पति का नेतृत्व होता है और जहां सोम प्रमुख होता है (गौ सेवा, तुलसी पूजा, वृक्ष पूजा आदि) वहां पत्नी का नेतृत्व होता है।