Corporate youth lives in grand illusion. For them charity starts at monthly 100-200 Rs deduction to GiveIndia or like NGO (so that they can avail associated TAX benefits) and ends at used clothes collection and distribution. This is Rajasik or Tamasik charity. Strive for Sattvik Charity.
This is for them:
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदोहा निरिन्द्रिया: ।
अनन्दा नाम ते लोकास्तान् स गच्छति ता ददत् ॥३॥
ये दुग्ध हीन निरिन्द्रियाँ, गौएँ तो मरणासन्न हैं,
यह दान व्यर्थ है, पिता मेरे, इतने कैसे प्रसन्न हैं?
जो भी निरर्थक वस्तुएं हों, दान उनका व्यर्थ है,
जो प्रेय श्रेय को दे सके, उस दान का ही अर्थ है॥ [ ३ ]
Can you go to next level of charity?
Reference: http://goo.gl/e3EhzO ( Kavitakosh.org)