अधिकांश परिवार सुखी नहीं हैं क्योंकि परिवार में से कोई भी karma-basin(कर्माशय) की भूमिका में,सतत आध्यात्मिक साधना में नहीं लगा हुआ है। सभी की आध्यात्मिक प्रगति समान नहीं होती और इसीलिए परिवार भावना सांसारिक अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
कर्माशय का कार्य है, जीवन में आकार ले रही सभी परिस्थितियों और उनके परिणाम को स्थितप्रज्ञ के रूप में साक्षी भाव से सहन करें। परिवार के अन्य सभ्यों की भी आध्यात्मिक और मानसिक कवच बने।
अधिकांश घर के मुख्य व्यक्ति का यह कर्तव्य कर्म है की वह अपनी साधना के बल से परिवार के कर्मों के फल की प्रतिकूल असर को कम करें। अपने आध्यात्मिक प्रभाव से, स्वयं की दिनचर्या और आचरण से, घर के सभी सभ्यों को धर्म के पालन के लिए प्रेरित करें।
परिवार टूट रहे है और यह कर्माशय बनने का शिक्षण मिलना तो कब का बंध है।
स्वयं से प्रश्न पूछो – क्या में मेरे परिवार का कर्माशय बन सकता हूँ? क्या में नित्य आध्यात्मिक साधना कर रहा हूँ?