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prachodayatroots
What is ideal or primary training for someone who wish to be a Doctor(Societal as well as Shariri)/Teacher/ब्राह्मण?
तीक्ष्णेषवो ब्राह्मणा हेति मन्तो यामस्यन्ति शख्यं न सा मृषा। अनुहाय तपसा मन्युनाचोत् दूरादेव भिन्दत्येनम्-अथर्व 5।18।9
जिसकी जीभ प्रत्यंचा है। उच्चारण किया हुआ मन्त्र जिसका बाण है। संयम जिसका वाणाग्र है। तप से जिसे तीक्ष्ण किया गया है। आत्मबल जिसका धनुष है, ऐसा साधक अपने मन्त्र बल से समस्त देव द्रोही तत्वों को बेध डालता है।
The one whose ‘वाक्’ is powerful enough to trigger self-realization in millions – he will save the dhara and by sustaining dharma.
जिहृ ज्या भवति कुल्मलं वाक् नाडीका दनतास्तपसाभि दग्धाः। तेभिर्ब्रह्मा विध्यति देव्पीयून् ह्नद् वधैर्धनुभिर्देवजूतेः -अथर्व 5।18।9
अर्थात्- आत्म बल रूपी धनुष, तप, रूपी, तीक्ष्ण बाण लेकर तप और मन्यु के सहारे जब यह तपस्वी ब्रह्मवेत्ता मन्त्र शक्ति का प्रहार करते हैं तो अनात्म तत्वों को पूरी तरह बेधकर रख देते हैं।
War has already began in mind-space. In this world war, we will need this invisible missiles. Power of Vak. Power of spirit. Power of mind.