आजकल हमारे कर्मकांड का शिक्षण भी बॉलीवुड करता है। रक्षाबंधन से ले कर दिवाली, सभी उत्सव और व्रतों का शिक्षण बॉलीवुड और टीवी सीरीअल करते है! आधा, अधूरे, और विकृत उद्देश्य से आयोजित दृश्य और श्राव्य के माध्यम से शिक्षण !
आजकल एक कुप्रथा चल पड़ी है कि पूजन आरंभ होते हीं रूमाल निकाल कर सर पर रख लेते हैं, और कर्मकांड के लोग भी नहीं मना करते । जबकि पूजा में सिर ढकने को शास्त्र निषेध करता है। शौच के समय हीं सिर ढकने को कहा गया है। प्रणाम करते समय,जप व देव पूजा में सिर खुला रखें। तभी शास्त्रोचित फल प्राप्त होगा।
शास्त्र क्या कहते हैं ? आइए देखते हैं…
उष्णीषो कञ्चुकी चात्र मुक्तकेशी गलावृतः ।
प्रलपन् कम्पनश्चैव तत्कृतो निष्फलो जपः ॥
अर्थात् –
पगड़ी पहनकर, कुर्ता पहनकर, नग्न होकर, शिखा खोलकर, कण्ठको वस्त्रसे लपेटकर, बोलते हुए, और काँपते हुए जो जप किया जाता है, वह निष्फल होता है ।’
उष्णीशी कञ्चुकी नग्नो मुक्तकेशो गणावृत।
अपवित्रकरोऽशुद्धः प्रलपन्न जपेत् क्वचित् ॥-
(शब्द कल्पद्रुम )
अर्थात्– सिर ढककर,सिला वस्त्र धारण कर,बिना कच्छ के,शिखा खुलीं होने पर ,गले के वस्त्र लपेटकर ।
अपवित्र हाथों से,अपवित्र अवस्था में और बोलते हुए कभी जप नहीं करना चाहिए ।।