
gurukuleducation
charakeducation
जब बात मार्केट और मुनाफे की हो तो हम आयुर्वेद और वेद आधारित शास्त्रों को छोड़ो, आधुनिक विज्ञान की भी हम उपेक्षा करते है ।
लोग मुझे सदैव यह प्रश्न करते है की क्या तुम बच्चों के भविष्य के साथ खेल रहे हो ! उद्यान में शिक्षण कैसे होगा? अक्षर लेखन 7 वर्ष तक न करवाकर क्या उखाड़ लोगे? कंठस्थ करना अर्थात रटना – इसमे समय व्यय क्यूँ करते हो ..आदि आदि
यह चित्र में बताए गए मापदंड के अनुसार,
जन्म के पहले से और जन्म के बाद, 5 वर्ष तक दृष्टि और श्रवण शक्ति का विकास होता है – तब बच्चों को कैसा शिक्षण देना चाहिए?
- दृष्टि के समृद्ध वातावरण – जो की प्रकृति में अधिक समय रहने पर ही संभव है ।
- श्रवण समृद्धि – प्रकृति में सूक्ष्म से सूक्ष्म ध्वनि के सतत अभिषेक से, मातृ स्वर में मातृ भाषा देव भाषा संस्कृत में प्रसन्न चित्त के लिए गाए गए श्लोक, गीत, स्तोत्र, धुन, भजन के रूप में गूँजते ध्वनि से उत्तम कोई माध्यम नहीं! शार्दूल में 5 वर्ष से पहले ही बच्चें अपनी मातृभाषा में 3-4 सहस्र शब्द स्पष्ट उच्चारण से बोल लेते है!
अब बताओ ? शार्दूल का शिक्षण 100% वैज्ञानिक है की नहीं ?
चलो आगे बढ़ते है । आयु 5 से 15 तक बुद्धि के उच्च स्तरों का निर्माण होता है । यही आयु में बच्चों को कंठस्थकरण करवाने का आग्रह है । कंठस्थ करने से मस्तिष्क के ज्ञानतंतु के बढ़ते सेतु पर आधुनिक विज्ञान ने भी सिक्का लगा दिया है । और उच्च बुद्धि केंद्रों के लिए समृद्ध ज्ञान तन्तु के जोड़ होना आवश्यक है! अब बताओ – 5 से 15 वर्ष में गुरुकुल में जो रटना होता था वह वैज्ञानिक अभिगम था या कोरी श्रद्धा ? शार्दूल शिशु विहार वडोदरा के बच्चे , 5 वर्ष की आयु से ही श्रीमद भगवद गीत, अष्टाध्यायी, अमर कोश कंठस्थ करने लगते है और इसका सीधा परिणाम उनके गणित और विज्ञान विषय की ग्रहणशीलता पर पड़ता है । चौथी के बच्चे छठी के गणित आसानी से कर लेते है । दूसरी कक्षा का बच्चा भी भौतिक विज्ञान समझने लगता है ।

मन,बुद्धि,अहंकार,इंद्रियाँ और शरीर पर योग्य रूप में कार्य कर उनका सतत शोधन करते रहना ही संस्कार प्रक्रिया है !स्कूल तो उपेक्षा करेगी ही ! आप चूकना मत ! गुरु-शिष्य परंपरा में बच्चों को इन विषयों में अभ्यासरत रखना प्रारंभ करो !
जनहित में , राष्ट्रहित में जारी । 🙏