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साधनकी पवित्रता, शुद्धता, कार्य क्षमता न होने पर कर्म का फल भी यथा योग्य नहीं मिलता। शिक्षण कार्य में उपयोग में आनेवाली इंद्रियाँ, मन, शरीर, प्राण का विकास, शोधन न होने पर शिक्षण कार्य की निष्पत्तियाँ कैसे प्राप्त होगी?
योग, संस्कृत, संगीत आदि विषय को आजकाल सह-पाठयक्रम/पाठ्येतर/शौक के रूप में पढ़ाया जाता है । बस स्कूल के मार्केटिंग में काम लगे ऐसी पिक्चर्स खींचने हेतु। वास्तव में यह ऐसे विषय है की जिनको पाठ्यक्रम में विशेष और मुख्य स्थान मिलना चाहिए ! शिक्षण की सार्थकता इन विषयों में बच्चों की साधना पर निर्भर करती है ।
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मन,बुद्धि,अहंकार,इंद्रियाँ और शरीर पर योग्य रूप में कार्य कर उनका सतत शोधन करते रहना ही संस्कार प्रक्रिया है !स्कूल तो उपेक्षा करेगी ही ! आप चूकना मत ! गुरु-शिष्य परंपरा में बच्चों को इन विषयों में अभ्यासरत रखना प्रारंभ करो !
जनहित में , राष्ट्रहित में जारी । 🙏