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पाचन तंत्र के साथ जन्म होने पर भी अन्नप्राशन 6 महीने बाद ही होता है। प्रजनन तंत्र और उससे सलग्न अन्य शरीर प्रणालिओ का किशोर अवस्था में ही सक्रिय हो जाने पर भी गृहस्थ आश्रम तक रुकना यह अर्थात ब्रह्मचारी जीवन जीने हेतु बच्चों को प्रेरित करना यह शिक्षण व्यवस्था का उच्च वैज्ञानिक अभिगम है। उससे विपरीत, आजकल बाल्य अवस्था से ही बच्चों को कामी बनने का वातावरण प्रदान किया जा रहा है ।
मेरे मत से ऐसी सभी शिक्षण व्यवस्था (चाहे वह finland की व्यवस्था हो या भारतीय) निष्फल है जो 5 से 15 वर्ष की आयु में शिस्त, संयम, सहनशीलता, तप का शिक्षण देने से चुकती है । अन्नप्राशन 6 महीने पर तो गृहस्थ जीवन 25 पर । सनातन जीवन प्रणाली मात्र श्रद्धा से नहीं विज्ञान के तर्क से भी सटीक है (छोटी आयु में कामी बनने पर ही तो आज विकसित देशों में herpes, warts, chlamydia, और अन्य रोगों से पीड़ित किशोरों की संख्या अधिक है। HPV जैसी बीमारियाँ भी अविकसित स्त्री प्रजनन तंत्र के उपयोग के कारण ही होते है )