10 मृत्युकारक जाल

Marut

Dharma

Sonaali Mishra ji shared very painful observation.

2 वर्ष पूर्व कुछ ऐसा ही निरीक्षण किया था – पुरानी २ पोस्ट से इस संदर्भ में लिखा था

“लावण्य रहित, सौन्दर्य रहित लड़की होने की आभा रहित चेहरे दिखाई देंगे! पुरुषनुमा कठोरता कक्षा 7 से ही उनके चेहरे पर आ जाती है.

भ्रम से पूर्ण चेहरा, एवं सहज सौन्दर्य से रहित उनकी माएं! आपका जी नहीं घबराता लड़कियों का लड़कीपना गायब होते देखकर? “

[Written on 31-Oct-2020]

ऐसा क्यूँ?

पोस्ट १ :

Present young generation is born by passing “चक्षु:प्रीति:, मन:संग:, संकल्पोत्पति:, निन्द्राच्छेद :, तनुता, विषयेभ्यो व्यावृत्ति:, लज्जा:नाश, ” (gifted by parents) and they always remain in उन्माद.

As they grow up and become adult, they become zombies (मूर्छा) and ever remain dead weight for the society.

Save young generation. Be their friend, philosopher and guide.

दश तु कामस्थानानि | चक्षु:प्रीति:, मन:संग:, संकल्पोत्पति:, निन्द्राच्छेद :, तनुता, विषयेभ्यो व्यावृत्ति:, लज्जा:नाश, उन्माद, मूर्छा, मरण: ||

Death by lust has 10 stoppages in between. Majority in their sweet 16 are directly introduced to 8th step उन्माद by army of media असुरs in drawing room/computer/mobile by obscene and cheap weapons of mass destruction.

न जातु काम: कामनामुपभोगेन शाम्यति| हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्धते || – मनु स्मृति

Desire is never calmed by the enjoyment of the objects of desire; it only grows stronger like fire does by oblations. This is missing in present education system. 🙁

पोस्ट २ :

महाभारतके सन्दर्भ से समझ आते है आसुरिक शिक्षणके परिणाम! आज लज्जा नामक आभूषणका उपयोग लोक प्रचलनसे क्यूँ गया? आनेवाली पीढ़ीको बुद्धि भ्रष्ट\नष्ट करनेवाला शिक्षण जो दे रहे है!आज ६-७ वर्ष की आयु से ही विनम्रता और ऋजुता का ध्वंस होने लगा है। जिस गुण का वर्धन और संवर्धन होना चाहिए,आधुनिक शिक्षण उसको मार कर स्वंछंदता को बढ़ावा देता है।

आत्मघाती जीवन का त्याग करें! आने वाली पीढ़ीको योग्य शिक्षण देने हेतु कटिबद्ध और क्रियाशील रहें!

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