प्रायश्चित विधि का सामान्य जन के जीवन से लोप अर्थात एक उच्च मनोवैज्ञानिक उपचार पद्धति का नाश! परिणाम? स्वच्छंद, मूढ़, मन और शरीर से रोगीष्ठ समाज! स्वच्छंद समाज आसुरी वृत्ती की पराकाष्ठा है | स्वयं भी पीड़ित और परपीडन में विकृत आनंद ! सब कुछ टल सकता है यदि हम स्वच्छंदता छोड़े ! प्रायश्चित करना सीखे !
और यदि आप ऐसा सोचते हो की आप पाप करते ही नहीं तो आप से बड़े मूढ़ और कोई नहीं ! घर में रसोई है तो भी पाप होते है ! सोच लो!
पाप का स्वीकार करना है और हीन भावना \ अपराध भाव से मुक्त होना है ! और कोई विधि नहीं आती तो आँख बंध करके दैनिक प्रार्थना समय पर भगवान से माफी मांग लीजिए !
सूक्ष्म रूप से आपके भाव ही आपको बीमार बनाते है ! एक भाव है अपराध भाव और दूसरा भाव है स्वच्छंदता ! दोनों ही रुग्णता को निमंत्रण है ! जागरूक रहिए ! दैनिक पश्चाताप और प्रायश्चित अचूक कीजिए !
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