संस्कृत साधना : पाठ ४ (कारकों की पहचान)

Śyāmakiśora Miśra

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सभी सुधी मित्रों को प्यार भरा नमस्कार !
कल हमने आपको कारकों के विषय में समझाया था। आशा करता हूँ कि कर्त्ता, कर्म आदि कारकों के विषय में आप समझ गये होंगे। यह भी पक्का हो गया होगा कि किस कारक में कौन-सी विभक्ति लगती है। एक बात निवेदन करना चाहता हूँ कि ये लेख प्रारम्भिक स्तर के हैं, इसलिए इनमें सूक्ष्म विषयों पर चर्चा नहीं की जा रही है। दूसरी बात यह कि जब तक हम लकारों के विषय में नहीं समझा देते तब तक “वर्तमानकाल” की क्रियाओं का ही उपयोग करेंगे क्योंकि आप “ति” “तः” “न्ति” लगाकर उनका प्रयोग करना जानते हैं। आज आपको वाक्य में कारकों को पहचान कर उनमें विभक्तियाँ लगाने का अभ्यास करायेंगे।

1] कर्त्ता आदि कारकों को पहचानने के लिए आप इस चिर-परिचित विधि को भी उपयोग में ला सकते हैं-

कर्त्ता = ने
कर्म = को
करण = से, के द्वारा
सम्प्रदान = के लिए
अपादान = से (अलग होने में)
सम्बन्ध = का, की, के
अधिकरण = में, पर
सम्बोधन = हे, अरे, भो

2] किन्तु कभी-कभी ये चिह्न कारकों के साथ नहीं भी दिखाई पड़ते। जैसे कहीं-कहीं बोला जाता है- “मैं भोजन किया” इसमें “मैं” के साथ “ने” चिह्न नहीं दिखाई पड़ रहा। ऐसे में यही देखना चाहिए कि क्रिया को कौन कर रहा है ? जो कर रहा होगा वही “कर्त्ता” होगा।

3] इसी प्रकार सम्प्रदान कारक को पहचानने में कठिनाई आ सकती है। उपर्युक्त विधि में हमने पढ़ा कि “के लिए” सम्प्रदान का चिह्न है, किन्तु सम्प्रदान के लिए कभी कभी “को” चिह्न भी आ जाता है, जैसे- “कृष्ण ‘अर्जुन को’ दिव्यदृष्टि देता है।” ऐसे में आपको चाहिए कि “क्रिया” जिसके लिए (जिसको उद्देश्य मानकर) की जा रही हो वह “सम्प्रदान” होगा। प्रस्तुत वाक्य में “देना” क्रिया अर्जुन के लिए है, “देना” क्रिया का फल अर्जुन को मिल रहा है। इसलिए “अर्जुन” सम्प्रदान कारक हुआ।

ये सब बातें अभ्यास करने पर आप स्वयं समझ जाएँगे। तो चलिए अभ्यास शुरू करते हैं। साथ ही विभक्ति लगाकर संस्कृत भी बनाते चलेंगे।

1) कृष्ण अर्जुन को दिव्यदृष्टि देता है ।
– कृष्ण कर्त्ता, अर्जुन सम्प्रदान, दिव्यदृष्टि कर्म, ‘देता है’ क्रिया है।
= कृष्णः अर्जुनाय दिव्यदृष्टिं ददाति।

2) साकेत अभय को हाथ से लड्डू देता है।
– साकेत कर्त्ता, अभय सम्प्रदान, ‘हाथ से’ करण, लड्डू कर्म, ‘देता है’ क्रिया।
= साकेतः अभयाय हस्तेन मोदकं ददाति।

3) मुदित कार से जयपुर से जोधपुर जाता है।
– मुदित कर्त्ता, कार करण, जयपुर अपादान, जोधपुर कर्म, ‘जाता है’ क्रिया।
= मुदितः कारयानेन जयपुरात् जोधपुरं गच्छति।

4) श्यामकिशोर की पुस्तकें हैं।
– श्यामकिशोर सम्बन्ध, पुस्तकें कर्ता, ‘हैं’ क्रिया।
= श्यामकिशोरस्य पुस्तकानि सन्ति।

5) पाकिस्तान में आतंकवादी रहते हैं।
– पाकिस्तान अधिकरण, आतंकवादी कर्त्ता, ‘रहते हैं’ क्रिया।
= पाकिस्ताने आतङ्कवादिनः वसन्ति।

इसप्रकार आप भी स्वयं वाक्य बनाकर उनमें कारक ढूँढकर विभक्तियाँ लगाइये। आप देखेंगे कि कितनी आसानी से आप संस्कृत लिखने लगे।

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कल वाले श्लोक का अर्थ:

1] रामः राजमणिः सदा विजयते।
राजमणि* राम सदा जीतते हैं।
*जो राजाओं में मणि के समान है।

2] रामं रमेशं भजे।
रमापति राम को भजता हूँ।

3] रामेण अभिहता निशाचरचमू ।
राम के द्वारा राक्षसों की सेना मारी गई।

4] रामाय तस्मै नमः।
उस राम के लिए नमस्कार है।

5] रामात् नास्ति परायणं परतरम् ।
राम से अतिरिक्त दूसरा आश्रय नहीं है।

6] रामस्य दासः अस्मि अहम् ।
मैं राम का दास हूँ।

7] रामे चित्तलयः सदा भवतु मे।
राम में सदा मेरा चित्त लगा रहे।

8] हे राम! मां पालय ॥
हे राम ! मेरी रक्षा करो ।

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