Tree : Blockchain of Prana

Nisarg Joshi

Prana, Tree

लेख हिन्दी के बाद अंग्रेजी में । 

हिन्दी

“में क्यूँ सार्वजनिक मंदिर जाऊ? अपनी साधना तो में अपने घर ही कर लेता हूँ! मंदिर के कर्मकांड को में नहीं मानता! मंदिर तो पंडितों का धंधा मात्र है!”

मंदिर जाना स्व के लिए नहीं समाज के लिए है । यदि में एक स्वस्थ, प्राणवान, उत्साह सभर अस्तित्व को धारण किए हुए हूँ तो यह मेरा कर्तव्य कर्म है की में मंदिर स्थित प्राण प्रतिष्ठित दैवी वृक्षों के माध्यम से अपने प्राण से समाज के निर्बलों के प्राण की पूर्ति करू।

थोड़ा अटपटा है । चलो Blockchain के माध्यम से समझते है। Blockchain एक digital ledger है. लेकिन क्या आप जानते हैं की Ledger क्या है? Ledger एक ऐसा book है जो की ऐसे account रखता है जहाँ debits और credits transactions post होते हैं वो book से जहाँ की original entry होते हैं. या यूँ कहे की original book से entry इस ledger में update होते हैं।

बस प्राण जगत में कुछ वृक्ष(पीपल,वटवृक्ष) भी इस Blockchain जैसा काम करता है । प्राण के क्रेडिट और डेबिट होते रहते है।

फ़िनलैंड और अन्य यूरोपीय देश अब फ़ॉरेस्ट स्कूल चलाते हैं। जापानी और ऑस्ट्रेलियाई वन स्नान के लिए सामुदायिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करते हैं (जंगल का दौरा करना और वहां समय बिताना। कोई शिविर या पिकनिक नहीं। बस जंगलों की मूक यात्रा)। वह लोग वृक्ष और जंगल का महत्व समझने लगे है । प्राण आदान प्रदान में वृक्ष का उपयोग करने लगे है।

और हम अपनी पिछली पीढ़ी को, जोकि पूरी आस्था से वृक्ष पूजा करते थे, उनको अतार्किक, धर्मांध और अंधविश्वासी बताकर पेड़ों की पूजा का उपहास करते हैं! अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आपका नुकसान हो रहा है!

मनुष्य का पृथ्वी के साथ जन्मजात संबंध है। हम एक अदृश्य गर्भनाल के साथ पैदा हुए हैं जो हमें हमारे पैरों के नीचे की जमीन से जोड़ती है। जैसे-जैसे हम बढ़ते हैं और अपने भीतर फंस जाते हैं, हम उस संबंध को खो देते हैं। वृक्ष उस अदृश्य राग का एक भाग है।

सिर्फ स्वार्थ के लिए पेड़ न लगाएं।
सिर्फ पेड़ मत लगाओ, उनकी पूजा करो!
आधुनिक विज्ञान भी मानता है की दृष्टा की दृष्टि के अनुरूप परिणाम मिलता है । वृक्ष के प्रति श्रद्धा न होने पर मात्र वृक्षारोपण प्रभावी राजसिक कार्य मात्र रह जाता है !

और जब आप वृक्षों से मिलने जाएं तो उपभोग की मानसिकता के साथ न जाएं! बलिदानी मानसिकता के साथ जाओ! अपने मन और प्राण को पेड़ के लिए बलिदान कर दो, पेड़ इसे जमा करेगा और समुदाय की सेवा करेगा! अगर यह समझना मुश्किल है, तो नज़रअंदाज़ करें! बस जाओ और प्रयोग करो 🙂

जब आप मंदिर-वृक्ष के दर्शन करें, तो अपेक्षाओं के साथ न जाएं। प्राण दान देने के रवैये के साथ जाओ। प्राण हमारी मानसिकता के आधार पर कार्य करता है। पेड़ आपके बिना कुछ मांगे बहुतायत में वापस देता है! बस अपने तर्कसंगत अहंकार को एक तरफ रख दें और माँ प्रकृति के प्रति समर्पण कर दें।

अंग्रेजी

Finland and other European countries now run forest schools. Japanese and Australians arrange community events for forest bath (visiting forest and spending time there. No camping or picnic. Just silent visits to forests)

And we prefer to corner our last generation visiting and worshiping trees as irrational, bigot and superstitious! If you are doing so, you are at loss!

Humans have an innate connection with the Earth. We are born with an invisible umbilical cord that bonds us with the ground beneath our feet. As we grow and get caught up within ourselves we lose that connection. Tree is the one portion of that invisible chord.

Don’t just plant trees for selfish motive.
Don’t just plant trees, worship them!

And when you visit them, don’t go with consumption mindset! Go with sacrificial mindset! Sacrifice your mind and prana to the tree, tree will accumulate it and serve the community! If this is difficult to understand, ignore! Just go and experiment 🙂

When you visit temple-tree, don’t go with expectations. Go with attitude of give back. Based on our mindset, Prana acts. Tree gives back in abundance without you ask for anything! Just keep your rational ego aside and surrender to mother nature.

Leave a Comment

The Prachodayat.in covers various topics, including politics, entertainment, sports, and business.

Have a question?

Contact us