कुमार अवस्था की यह लाक्षणीकता है की आदर्श के अनुसार अपने व्यवहार को ढालों । और आदर्श कहीं दूर ढूढने नहीं जाना है । अपने से 2-4 वर्ष बड़े बच्चे ही उनके आदर्श बन जाते है! अभिभावक का कर्तव्य है की, कुमार अवस्था की संवेदनशीलता समझे, इस अवस्था में हो रहे मन, मस्तिष्क और बुद्धि विकास हेतु, आदर्श जीवन का निरूपण बच्चों को अपने मित्रों से ही मिले ! और यह कार्य तभी संभव है जब दक्ष मातापिता बच्चों से नियमित संवाद कर उनके मन पर प्रक्रिया कर रहे हो!
- कुमार अवस्था में बच्चों को आदर्श सहजीवन प्रदान करना सबसे महत्वपूर्ण है।
- बच्चों के मित्रों के परिवार से मित्रता साधिए
- पारिवारिक रूप में, अपना जीवन और वाणी के प्रभाव से, एकदूसरे के बच्चे के मित्रों में जीवन आदर्श प्रस्थापित कीजिए ।