पितृ तृप्ति का कारण है माँ का स्वधा स्वरूप

Marut

Navaratra, Navratri, Pitru, Pitru Tarpana

पितृ पक्ष में हमने पितृगण को समझने का प्रयत्न किया था। पितृओं को तृप्ति स्वधा से प्राप्त होती है । यह स्वधा प्रक्रिया का कारण माँ है। स्वधा के उच्चारण से ही पितृगण तक पिंड गत रस का वहन साकार होता है ।

यह स्वधा देवी पितृओ की पत्नी है । जैसे पति शब्द का व्यापक अर्थ और कार्य रक्षण है वैसे ही पत्नी का व्यापक कार्य पोषण और तृप्ति है ।

स्वधा देवी मूल प्रकृति माँ जगदंबा की अंशभूत है ।

श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्‍नभूषणभूषिताम् ।

वह्निशुद्धांशुकाधानां नागयज्ञोपवीतिनीम् ॥ २ ॥

श्वेत चम्पक पुष्प समान वर्ण वाली, माँ धार्मिक जनों को वर देने सदा तत्पर रहती है ।

देवी भागवत(स्कन्ध 9 – 44) अनुसार

स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नरः ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत् ॥

‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से मानव तीर्थ स्नायी हो जाता है. वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर वाजपेय यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है.

स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत्।

श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालस्य तर्पणस्य च।।2।।

अर्थ – स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण किया जाए तो श्राद्ध, काल और तर्पण के फल पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं.

माँ भगवती “स्वधा” में विराजमान होती है । जब जब स्वधा का आह्वान होता है तब तब माँ ही पोषण कार्य करती है । अग्निसोमात्मक ब्रह्मांड और पिंड के पोषण का वहन माँ भगवती है ।

वैसे तो यह बात श्रद्धा से स्वीकार होनी चाहिए किन्तु हमारे तार्किक मन के समाधान हेतु कुछ विस्तार कर सकते है ।

हमारे स्थूल वाक के साथ साथ सूक्ष्म स्तर के कंपन , मानसिक कंपन पितृ लोक तक संदेश ले जाते है । स्थूल विद्युतचुंबकीय कंपन माहिती का वहन करते है तो ही हमारा संदेश मोबाइल के माध्यम से एक स्थल से अन्य कोई भी स्थल जा सकता है । वैसे ही स्वधा नामक ऊर्जा रूपी वाहन जोकि माँ की शक्ति से संचालित है, वह हमारा मानसी तर्पण समग्र संसार में स्थित मूर्त, अमूर्त, पिंडगत(जिनका जन्म हो गया है वैसे पितृ), अंतरिक्ष स्थित, पितृलोक स्थित पितृओ तक वहन करते है । यदि यह तर्क भी मनभावन नहीं है तो एक अंतिम प्रयास पुरानी पोस्ट से :

The Vagus nerve is the longest nerve in the body. It originates in the brain and travels all the way down to the lower internal organs. It is a fundamental regulator of the parasympathetic nervous system, which controls all the involuntary processes such as digestion, heartbeat, respiration, etc. and is responsible for restoring relaxation after a response to stress or danger (the sympathetic nervous system’s activation).

The strength of the vagus response is called “vagal tone” and it is determined by the variations in the heart-rate that can be measured between inhalation and exhalation. During the inhalation, the heart speeds up and during the exhalation, it slows down. The bigger the difference between these two phases, the higher the vagal tone. A high vagal tone is what we need in order to maintain a state of good health.

The relevance of the vagus nerve in sound-based therapies

The ear and hearing have a substantial effect on the rest of the body because of their proximity to the vagus nerve.

The vagus nerve, or tenth cranial nerve does not play an active part in the process of hearing, therefore it is not normally taken into big consideration in things that relate to music, hearing and the like outside of the medical field.

However, this incredibly important nerve is connected with the posterior wall of the external auditory canal, the lower part of the eardrum’s membrane and in the middle ear: the stapedius (stirrup) muscle. From these parts of the ear, it makes its way all the way down to the lower internal organs and is responsible for a high number of regulatory functions in pharynx, larynx, thorax and abdomen.

Basically, stimulating the ear means stimulating all the vital vegetative internal organs.

जैसे सप्त धातुओ रूपी शरीर का पोषण अन्नरस से होता है वैसे ही तो स्वधा के उच्चारण से निश्चित एक कंपन की उत्पत्ति होती है और इसके पिंड में वहन से देहपरमाणु स्थित पितृ आशीर्वाद सार(genes) का योग्य संचालन हो सकता है । यह संशोधन का विषय है ।

अस्तु ।

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