सुधी मित्रों ! नमः संस्कृताय !!
कल के पाठ में आपने वाक्य में कारकों को पहचान कर उनमें विभक्तियाँ लगाना सीखा। आशा करता हूँ कि आपने इसका अभ्यास भी अवश्य किया होगा। देखिए बिना अभ्यास के कोई भी विद्या कदापि नहीं आ सकती। सभी राजकुमारों को पढ़ाते तो आचार्य द्रोण ही थे, किन्तु अर्जुन ही सर्वश्रेष्ठ क्यों हुए ? क्योंकि उन्होंने अभ्यास की पराकाष्ठा कर दी थी। इसलिए ध्यान रहे- “अनभ्यासे विषं विद्या।”
आज क्रिया के विषय में समझाते हैं। ध्यान दीजिए, जब ‘क्रिया’ कहेंगे तब आप “धातु” न समझ बैठियेगा। कर्त्ता की चेष्टा या अस्तित्व (सत्ता) को ‘क्रिया’ कहते हैं और इन क्रियाओं का वर्णन करने वाले मूल शब्द धातु कहे जाते हैं। इनका उपदेश इन्द्र, वायु, काशकृत्स्न, भरद्वाज, पाणिनि, शाकटायन आदि महान् देवताओं और ऋषियों ने किया था। संस्कृतभाषा और संसार की लगभग सभी भाषाओं का मूल यही धातुएँ हैं। किन्तु अभी तो हम “क्रिया” पर चर्चा करेंगे।
१] क्रिया दो प्रकार की होती है- अकर्मक और सकर्मक।
क) अकर्मक क्रिया : जिस क्रिया का कर्म नहीं होता अथवा जिस क्रिया का फल कर्त्ता पर ही पड़ता है, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – ‘अरविन्द सोता है’ यहाँ शयन की क्रिया हो रही है। उसका फल ‘अरविन्द’ पर ही आश्रित है। यह नहीं कह सकते कि क्या सोता है ? या किसे सोता है ? या किसको सोता है ? इस क्रिया का कर्म नहीं है अतः यह क्रिया अकर्मक है।
ख) सकर्मक क्रिया : जहाँ कर्त्ता की क्रिया का फल किसी अन्य पर पड़े उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस क्रिया का कोई न कोई कर्म हो, वह सकर्मक क्रिया है। जैसे – ‘तारासिंह अशरफ़ अली को पीटता है।’ यहाँ कर्त्ता तारासिंह की क्रिया का असर अशरफ़ अली पर पड़ रहा है, इसलिए यह सकर्मक क्रिया है।
२] अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं को पहचानने की सरल विधि यह है कि जहाँ वाक्य के उच्चारण करने पर ‘क्या’ ‘किसको’ का प्रश्न शेष न रहे वह अकर्मक क्रिया और जहाँ ये प्रश्न शेष रह जाएँ, वह सकर्मक क्रिया है। ‘मोहन जागता है’ ‘मोहन सोता है’ इस प्रकार के वाक्यों में ‘क्या’ जागता है या ‘किसको’ जागता है इत्यादि प्रश्न शेष नहीं रहते, अतः ‘सोना’ ‘जागना’ आदि क्रियाएँ अकर्मक हैं ।
कौन कौन सी क्रियाएँ अकर्मक होती हैं, यह कल बताएँगे।
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वाक्य अभ्यास
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वृक्षों पर पक्षी बैठते हैं।
वृक्ष अधिकरण, पक्षी कर्त्ता, ‘बैठते हैं’ क्रिया।
= वृक्षेषु खगाः उपविशन्ति।
तुम रमेश के उद्यान से फल लाते हो।
तुम कर्त्ता, रमेश सम्बन्ध, उद्यान अपादान, फल कर्म, ‘लाते हो’ क्रिया।
= त्वं रमेशस्य उद्यानात् फलानि आनयसि।
तुम दोनों पिताजी के रुपये भिखारी को देते हो।
‘तुम दोनों’ कर्ता, पिताजी सम्बन्ध, रुपये कर्म भिखारी सम्प्रदान, ‘देते हो’ क्रिया ।
= युवां पितुः रूप्यकाणि भिक्षुकाय यच्छथः।
मैं साइकिल से विश्वविद्यालय जाता हूँ।
मैं कर्त्ता, साइकिल करण, विश्वविद्यालय कर्म, ‘जाता हूँ’ क्रिया ।
= अहं द्विचक्रिकया विश्वविद्यालयं गच्छामि।
संग से काम उत्पन्न होता है।
संग अपादान, काम कर्त्ता, ‘उत्पन्न होता है’ क्रिया ।
= सङ्गात् सञ्जायते कामः।
काम से क्रोध उत्पन्न होता है।
काम अपादान, क्रोध कर्त्ता, ‘उत्पन्न होता है’ क्रिया।
= कामात् क्रोधः अभिजायते।
क्रोध से मोह होता है ।
= क्रोधात् भवति सम्मोहः।
मोह से स्मृतिविभ्रम होता है।
= मोहात् स्मृतिविभ्रमः भवति।
स्मृतिनाश से बुद्धिनाश होता है।
= स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः भवति।
बुद्धिनाश से साधक नष्ट होता है ।
= बुद्धिनाशात् साधकः नश्यति।
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श्लोक :
वेशेन वपुषा वाचा विद्यया विनयेन च।
वकारैः पञ्चभिः युक्तः नरः भवति पूजितः॥
वेश (पहनावा), शरीर, वाणी, विद्या और विनय – इन पाँच वकारों से युक्त पुरुष पूजित (सम्मानित) होता है।
**उपर्युक्त श्लोक में विभिन्न शब्दों के तृतीया एकवचन के रूप हैं।